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________________ ( ४२६ ) यन्मृर्त्यवयवाः सूक्ष्मास्तस्ये मान्या अयन्ति षट् । तस्माच्छरीरमित्याहुस्तस्य मूर्ति मनीषिणः ॥ मनु० १ । १७ अर्थ-ममा के शरीर के अवयव अर्थात् पांच तन्मात्रा और अहंकार पांच महाभूत तथा इन्द्रियों को उत्पन्न करत हैं । फलस्वरूप पांच महाभूत और इन्द्रिय रूप ब्रह्मा को मूर्ति को विद्वान लोग पडायतन रूप शरीर कहत है। इस भांति ब्रह्माके शरीरकी रचना पूरी होनेके साथ सांख्यके तत्वों को रचना पूरी हो जाता है १८वें श्लोक से ३० में श्लोक तक भूतों का कार्य आदि लूट कर मृष्टि बताई गई है परन्तु विस्तार बढ जाने के कारण उसका उल्लेख यहां न करके ३५ व श्लोक से ब्रह्मा की जो बाल मृष्टि वरिणत की गई है उनका थोड़ा सा दिग्दर्शन कराया जाता है। द्विधा कृत्यात्मनो देहमधेमन पुरुषोऽभवत् । अर्धन नारी तस्यां स विराजमसृजप्रभुः ।। मनु० ११३२ अथ-ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो टुकड़े किये एक टुकड़े का पुरुष बनाया और दूसरे पाये टुकड़े की स्त्रा बनाई। फिर वोमें विराट पुरुष का निर्माण किया। तपातप्त्या सृजयतु स स्वयं पुरुषो विगट् । तं मां वित्तास्य सस्य स्रष्टारं द्विजसत्तमाः ॥ मनु० १ ३३ अर्थ-उस पुरुष ने तप का श्राचरण करके जिसका निर्माण किया बड़ में मनु हूं । हे श्रेषु विजो : निम्मोक्त समय लुष्टि का निर्माता मुझे समझो।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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