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________________ ( ४२८ ) मनु सृष्टि: श्रहं प्रजाः सिचुस्तु तपस्तप्त्वा सुदुश्चरम् । पतीन् प्रजानामसृजं महर्षीनादितो दश || मनु० १।३४ अर्थ - मनु कहते हैं कि दुष्कर तप करके प्रजा सृजन करने की इच्छा से मैंने प्रारम्भ में दश महर्षि प्रजापतियोंको उत्पन्न किया । मरोचि मत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यं पुलहं ऋतुम् । प्रचेतसं वशिष्ठं च भृगु ं नारद मेव च ॥ मनुः १/३५ अर्थ- दस प्रजापतियों के नाम ये हैं: - ( १ ) मरीचि, (२) अत्रि, (३) अंगिरस ( ४ ) पुलस्य ( ५ ) पुलह, ( ६ ) ऋतु. (७) प्रचेतस, (८) वशिष्ठ (६) भृगु और ( १० ) नारद । एते मनस्तु सप्तान्या नसृजन्भूरितेजसः । देवान् देवनिकायांश्च महर्षी श्चामितौजसः । मनु० १ । ३६ अर्थ - इन प्रजापतियों ने बहुत तेजस्वी दूसरे सात मनुश्र को, देवों को देवों के स्थान स्वर्गादिकों को तथा अपरिमित तेज वाले महर्षियों को उत्पन्न किया। 3 : उपयुक्तरचना के सिवाय प्रजापतियों ने जो रचना की उसका वर्णन ३. वें श्लोक से ४० वे श्लोक तक इस प्रकार थाया है। यक्ष, राक्षस, पिशाच गन्धर्ण, अप्सरा, असुर, नाग (सर्प) गरुड़, पितृगण, विद्युत, गर्जना मेघ, रोहित ( दंडाकारतेज ) इन्द्र धनुष, उल्कापात उत्पातध्वनि, केतु ध्रुव अगस्त्यादि ज्योतिषी. किन्नर वानर मत्स्य, पक्षी, पशु. मृग मनुष्य सिंहादि कृमि. कीट, पतंग. जं मक्खी. खटमल बाँस मच्छर, वृक्षलता आदि अनेक प्रकार के स्थावर प्राणी उत्पन्न किये " : पूर्वी सात मनुष्यों में एक मनु तो यह प्रकृत मनु है । जो
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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