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________________ ( ४०७ ) उत्पति आदिकी कथन करने वाली शुसियां मिथ्या हैं ? इसका उत्तर आचार्य देते हैं कि यह सम्वाद अथवा उत्पत्ति आदि वास्तविक होते जो पूर्ण शास्त्रोंमें एक ही कारण वर्णन उपलब्ध होता. परस्पर विरुद्ध कथन कभी न प्राप्त होता । परन्तु परस्पर विरुद्ध लेख मिलता है अतः यह सिद्ध है कि इन श्रुतिका अभिप्राय यथा भुत अर्थ में नहीं है । इम प्रकार सृष्टि उत्पत्तिका कथन करने वाली श्रुतियों का प्रयोजन भी सृष्टि उत्पत्तिका कथन करना नहीं है इस पर यदि पुनः प्रश्न करता है कि यह विरोधी श्रुतियां पृथक सगको पृथक पृथक उत्पत्तिके प्रकारका कथन करती हैं। यदि ऐसा मानें तो ! sponden इसका उत्तर आचार्य देते हैं कि यह फल्पना ठीक नहीं क्योंकि उन कल्पों के कथन का प्रयोजन नहीं है । अतः यह कल्पना निष्प्रयोजन है। अतः यह सिद्ध है कि इन प्रतियों का प्रयोजन एक मात्र आत्मा ववोध कराना है। प्रारंण संवाद और उत्पत्तिश्रुतियों का इससे भिन्न कोई उद्देश्य सिद्ध नहीं हो सकता शेष कल्पनायें निरत्वार और व्यर्थ हैं। यदि ध्यान के लिये उपरोक्त विरोधी श्रुतियां मानी जायें तो भी ठीक नहीं। क्योंकि कलह, उत्पत्ति आदिको आदर्श नहीं कहा जासकता । तथा न यह किसी को इष्ट ही है। अतः सृष्टि सि कथन करने वाली श्रुतियों का अभिप्राय सृष्टि की उत्पत्ति बताना नहीं है, अपितु उन कथानकों से आत्मभाव बोध कराना है। तथा च ऐतरेय उपनषि भाष्य में लिखते हैं कि f "अवास्मा ववोधपात्रस्य विवत्त्वात् सर्वोऽयमर्थवादः " अर्थात नष्ट उत्पत्ति को बनाने वाली श्रुतियों का अभियाच Prastध कराना है। यह re नार्थ मा
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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