SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (.४% ) है। अर्थान आत्मा की स्तुति मात्र है । अभिप्राय यह है कि सृष्टि तो जैसी है वैसी ही है परन्तु इसकी उत्पत्ति और प्रलय का कथन वास्तविक नहीं है। उत्पत्तिका कथन करने वाली श्रुतियोंका केवल आत्मा की स्तुति करके आत्मज्ञान में अभिरुचि उत्पन्न करना प्रयोजन है। सृष्टि विषयमें अनेक वाद इच्छंति कृत्रिम सृष्टिवादिनः सर्वमेवमिति लोकम् । कृत्स्नं लोकं महेश्वरादयः सादि पर्यन्तम् ॥ ४२ ॥ . - व्याख्या-सृष्टि के बाद वाले सर्व लोक को ( सम्पूर्ण जगत् को) कृत्रिम (रचा हुआ ) मानते हैं, उनमें से महेश्वरादि से सृष्टि की उत्पति मानने वाले सृष्टिवादी हैं, वे सम्पूर्ण लोकको श्रादि और अंत वाला मानते हैं। मानीश्वरज केचित् केचित्सोमामि संभव लोकम् । . द्रव्यादिषड्विकल्पं जगदेतत्केचिदिच्छन्ति ॥ ४३ ॥ श्याख्या-मानी ईश्वर (अहंकारी ईश्वर ) मैं ईश्वर हूं ऐसे ईश्वर से लोक उत्पन्न हुआ है, ऐसा कितनेक मानते हैं कितनेक सोम और अग्नि से जगत् की उत्पत्ति मानते हैं, और कितनेक इस जगत् को द्रव्यादि षट् विकल्प रूप मानते हैं सोई दिखाते हैं। द्रव्यगुणकर्म सामान्ययुक्तविशेष कणाशिनस्तत्वम् । . वैशेषिकमेनावत् जगदप्येतावदेताच ॥४४॥ व्याख्या-पृथिव्यादि नत्र प्रकार का द्रव्य, शब्दादि चौबीस गुण उत्क्षेपादि पांच प्रकार क्रम, सामान्य द्वि प्रकार संमवाय एक, और विशेष अनन्त, यह षट पदार्थ कणाद मुनि का तत्व है, वेशेषिक मत भी इतना ही है और जगत् भी इतना ही है ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy