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________________ ( ४०६ ) बनाता है यदि ऐसा है तो कुम्हार भी परमेश्वर है। और यदि कोई कहे कि ईश्वर बिना सिर पैर और हाथोंके रचना करता है तो उसे तुम बेशक पागलखाने ले जा मकते हो। पृ० ६२ ( आप के भारत में दिये गये पाँच व्याख्यान ) श्री शंकराचार्य और जगत् भारत के महानाचार्य श्री शंकराचार्य जी ने उपनिषद भाष्य में लिखा है कि "यदि हि संवादः परमार्थ एवाभूत् एक रूप एवं संवादः सर्वं शाखास्व श्रोष्यत विरुद्धानेक प्रकरण नाश्रोष्यत । श्रूयते तु तस्मान्न तदर्ध्य संवादः तीनाम । तथोत्पत्ति शनि प्रत्येतानि कल्पसर्गभेदात्संवाद श्रुनीनामुत्पत्ति श्रुतिनांच प्रतिसर्गमन्यथात्वमिति चेत् १ न निष्प्रयोजन बाबू यथोक्त बुद्धयवतार प्रयोजन व्यतिरेकेण नान्य प्रयोजनत्वं संवादोत्पत्ति श्रुतीनां शक्यं कल्पयितुम् । तथान्यप्रतिपत्तये ध्यानार्थमिति चेन, कलहोत्पत्ति प्रलयानां प्रतिपचेरनिष्टम्वात् । तस्मादुच आदि श्रुनय श्रात्मैकत्व बुद्धचवतारायणि नान्यार्थाः कल्पयितुंयुक्ताः ।। " ( माण्डुक्य ० गौ० का ० १ ) अर्थ-शस्त्रों में देवासुर संग्राम तथा इन्द्रियोंका और प्राणों का परस्पर सम्बाद व कलह इसीप्रकार सृष्टि उत्पत्ति आदिका जो कथन है यह प्रत्येक वैदिक सुक्कोंमें और ब्राह्मणोंमें एवं उपनिषद् आदिमें परस्पर इतना विरुद्ध है कि उसकी संगति किसी प्रकार भी नहीं लग सकती । इसपर प्रतिवादीने शंका की कि क्या यह
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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