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________________ ( ४०२ ) सारांश सागेश यह है कि वर्तमान ईश्वर की कल्पना न वैदिक है और fares ही है। समाहित्य में जो भी वन प्राप्त होता है वह सब आलंकारिक वशन है, उससे न तो ईश्वर का कर्तृत्व सिद्ध होता है तथा न सृष्टे उत्पत्ति का ही। हम इस विषय में कुछ वैदिक उदाहरण उपस्थित करते हैं। अथर्ववेद के कां०] १९ में एक ब्रह्मचर्य सूक्त है, उसमें लिखा कि- ह्मचारिण पितरोदेवजनाः पृथक् देवा अनुवन्ति सर्वे । गन्धव एनमन्वायन त्रयस्त्रिंशत् त्रिशतः पट् सहस्राः । अथ० १११५ इयं समित् पृथिवीयद्वितीयो चान्तरिक्षं समिधा प्रखाति|४| वायस्तता ममसी उभे इमे ॥ ८ ॥ अर्थात् पितर देव, गन्धर्व आदि सब ब्रह्मधारी के अनुकूल रहते हैं। तथा ६३३३ वेब इस ब्रह्मचारी के पीछे पीछे फिरते हैं। आदि इसकी यह 'थी पहली समिधा (हवन करने की लकड़ी ) है तथा दूसरी समिधा है और अन्तरिक्ष तीसरी समिधा है । आचार्य ने पृथिवी और अन्तरिक्ष लोक को बनाया है । इत्यादि मन्त्र सब अर्थवाद मात्र है। क्योंकि न तो सम्पूर्ण देव हो यारी के पीछे पीछे अवारा गरों की तरह घूमने फिरने हैं और नहीं आचार्य ने पृथिवी आदि लोकों का निर्माण किया है। तथा न प्रथिवी की समिधायें बनाई जाती हैं। इस मन्त्र J 4
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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