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________________ (४०१ ) सबै दिवोऽजाया जाय ॥ ५ ॥ अर्थ- वह परमात्मा वर्गसे उत्पन्न हुआ और स्वर्गं परमात्मा से उत्पन्न हुआ। स वै दिग्भ्योऽजायत, तस्माद् दिशोजायन्त ॥ ६॥ अर्थ- वह परमात्मा दिशा से उत्पन्न हुआ और दिशाए परमात्मा से उत्पन्न हुई। सवै भूमे रजायत, तस्माद् भूमि रजायत । ७ ॥ अर्थ वह ईश्वर पृथ्वी से उत्पन्न हुआ और पृथ्वी परमात्मा से उत्पन्न हुई । सवा अग्ने रजायत, तस्मादग्निरजायत ॥ ८ ॥ अर्थ- वह परमात्मा श्रमि से उत्पन्न हुआ, और अभि परमामा से उत्पन्न हुई। स वा अद्द्भ्योऽजायत, तस्मादापोऽजायन्ते ॥ ६ ॥ अर्थ- वह परमात्मा पानीसे उत्पन्न हुआ और पानी परमात्म से उत्पन्न हुआ । : उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध है, कि वैदिक वाङ्गमय में जो प्रकरण जगत रचना परक प्रतीत होते हैं। वे वास्तव में सृष्टि रचना के विधायक नहीं हैं, अपितु वे अर्थ बाद मात्र हैं। जिसका वन विस्तार पूर्वक आगे किया जायगा । यदि ऐसा न मानें तो अथर्ववेद के कथनानुसार परमेश्वरकी भी उत्पत्ति माननी पड़ेगी। तथाच अनेक स्थानों पर इस शरीर रचना का वन आलंकारिक ढंग से किया है, । जससे सृष्टि रचनाका भ्रम सा हो जाता है ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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