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________________ का प्रयोजन केवल प्रभारी को और भाचार्य की प्रशंसा करना ही है। आः यह अक्षवार है। अनजानदाधार विकीसुद्याम् । अथ का४५०१११ अर्थात का खाधने याद ये रे धिनी गाय अन्तरिक्ष आदि लोकों को धारण किया । अयं समाज के सुप्रसिद्ध विद्वान् पं. राजाराम ओ ने लिखा कि “यह सूक्त अनवान (छकड़े को खींचने वाले की) खुति में है।" अथर्ववेद का०, ४ सू. २० में औषधि की स्तुति है। विस्रो दिवस्तिस्त्रः पृथिवीः षट् चेमादिशः पयक् । त्वया सर्वाभूतानि पश्यानि देश्याषधे ॥ २॥ अर्थात हे श्रोषधे. र प्रताप से मैं सम्पूर्ण लोका तथा संपूर्ण दिशाओं में देखू । यहां ओषधिका इतना प्रताप बताया गया है। इसी प्रकार अन्य स्थानों में भी उन उन पदाथों को स्तुति मात्र है। मामांसकों को परिभाषा में इसरे को अथवाद कहा है। नोट- आर्य विद्वानोंने मन्त्र के भावार्थमें लिखा है कि"पृथिवी आदि बनानेका भावार्थ है कि प्राचायले उपदेश द्वारा इनका प्रकाश किया।" यदि बनाने (उत्पन्न करने का यही अभिप्राय है तो पुरुष सूक्त हिरण्यगर्भ व स्कंभ आदि सूक्तों का भी यही भावार्थ मानकर यहाँ भी उपदेश द्वारा प्रकाश अर्थ करना चाहिये ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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