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________________ ( ३६३ ) वेद और जगत ; १ - - त्रिनामि चक्रमजरमन वर्णम् ॥ १ ॥ २- - द्वादशारं नहि तज्जराय || १ || ३ - सनादेव न शीर्यते सनामि ॥ १३॥ ऋ००१ मूक १६४ ४--पश्य देवस्य काव्यं यो न मचार न जीर्यति ।" ५---धुवाद्यौ वा पृथ्वी ध्रुवास पर्वता इमे विश्वविद जगत् ।। ४ ।। ऋ० मं० १० मुक्त १७३ १ ) त्रिनाभि, तीन ऋतुओं वाला यह संवत्सर, अंजर अमर है । (२) इस सूर्य को १२ आरे रूपी सम्वत्सर, वृद्ध नहीं कर सकता । (३) ये सूर्य आदि लोक, मूल सहित कभी नष्ट नहीं होते । (४) उस देव की रचना को देखो जो न नष्ट होती है, न जी । (५ यह पृथ्वी, द्युलोक, अन्तरिक्ष, और यह सत्र जगत मिथ्य है। इसप्रकार वेद जगतकी नित्यता को बताकर आगे कहते हैं कि(१) को ददर्श प्रथमं जायमानम् ।। ऋ० १११६४|४ (२) कतरा पूर्वा कतरा परायाः कथा जाते कत्रयों को बिवेद । ० २११८५ १ , (३) को अद्धा वेद क इह प्रवोचत् कुत आजाताकुत इयं विसृष्टिः । अङ्ग देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आ वभूव ॥ ६ ॥ .
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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