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________________ ( १५८ ) हरिणं जातवेदसं परायणं ज्योतिरेक तपं तम् । सहनश्मिः शतधा वतंपानः प्राणः प्रजानामुइयत्येप मूर्यः ॥ ॥ (प्रश्न उ८ श६-८) (१) देवानां वह्नितमः असि -- प्राण 'इन्द्रियों को चलाने वाला है. मूर्यामिकोंको' चलाता है. प्राणायाम द्वारा विद्वान' उन्नतिप्राप्त करते हैं। (6) पितगणां प्रथम स्वधाप्रसि । -- सम्पूर्ण पालक शक्तियों में मबसे श्रेष्ठ और ( प्रथम ) अव्वल दर्जेकी पालकशक्ति प्रारण है और वहीं (स्व-धा ) प्रात्मतत्वको धारणा करती है। (३, ऋषीणां सत्यं चरितं असि । - सा ऋषियों का सस्य (चरित) चाल-चलन अथवा नाचरण प्राण ही करता है। दो आँख. दो कान, और एक मुम्प ये सप्त ऋषि है ऐसा वेद और उपनिषद में कहा है। ____ अथर्वी गिरसा चरितं असि | = (अथर्वा अंगि-रसा) स्थिर अंगांके रमीका ( चरिनं ) चलन अथवा भ्रममा प्राण ही करता है । प्रागा के कारण पोषक रस सब अंगोमें भ्रमण करता है और सर्वत्र पहुंच कर सर्वत्र पुष्टि करता है। प्राण का प्रेरक कन उपनिषद में प्राणके प्रेरक का विचार किया है । प्राणके अधीन सम्पूर्ण जगत् हैं, तथापि प्राणको प्रेरणा देने वाला कौन हैं ? जिस प्रकार मंत्रीके आधीन सत्र राज्य होता है, उसी प्रकार प्राण प्राधीन सय इन्द्रियादिकोका राज्य है। परन्तु राजाकी प्रेरणास मन्त्री कार्य करता है उस प्रकार यहाँ प्राण का प्रेरक कौन है. यह प्रश्नका तात्पर्य है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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