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________________ ३४.७) जो कुछ त्रिलोकी में है वह सब प्राण के वश में हैं। माना के समान हमारा संरक्षण करो और शोभा तथा प्रज्ञा हमें हो । प्राणो वाव ज्येष्ठ एव ।। (छ०५/११. वृ०६:१११ ) प्राण ही सब से मुख्य और श्रे हैं। सब अन्य देव इस के आधार से रहते हैं। (अर्थात् बंदों में जयंत्र के नाम से प्रा का ही वर्णन है।) तथा- (१) प्राणी में बलं तन्प्राये प्रतिष्ठितम् ( ५१४/४ ) (२) प्राणो वा अमृतम् || ( वृ० ११६१३) (३) प्राणो वै सत्यम् ॥ (० २११/२० ) . (४) प्राणो वै यशोवलम् ! (यू० १ २२ ६ ) " (१) प्राण ही यल हैं, वह पल प्राण में रहता है। (२) प्राण ही अमृत है। (ज) पर ही यश और बल हैं।" इस प्रकार प्राण का महत्व है। प्राणकी श्रेष्ठता इतनी है कि उसका वर्णन शब्दो से नहीं हो सकता | प्राण कहाँ से आता है ? परन्तु इस प्राणशक्तिकी प्राप्ति प्राणियों को कैसे होती है. इस विषयमें निम्न मन्त्र देखने योग्य - आदित्य उदयन यत्प्राचीं दिशं प्रविशति तेन प्राच्यान् प्राणान रश्मिषु संनिधते ॥ यदक्षिणां यत्प्रतीचीं यदुद्दीन यदधी यदुर्ध्वं यदन्तरा दिशो यत्सर्व प्रकाशयति तेन सर्वान प्राणान् रश्मिषु संनिधते || ६ || स एष वैश्वानरो विश्वरूपः प्राणोऽग्निरुध्यते । तदेतच्चाभ्युक्तम् || ७ || विश्वरूपं
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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