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________________ केन प्राणः प्रथमः युक्तः ।। (केन 3०११) "किससे नियुक्त होता हुआ प्रारण चलना है ?" अर्थात प्राण की प्रेरक शक्ति कौनसी है ? इसके उत्तरमें उपनिषद् कहता है कि म उ प्राणस्य प्राणः ।। (केन उ० ११२) "वह श्रात्मा प्रारणका प्राण है अथान प्राणका प्रेरक श्रात्मा है। इसका वर्णन और देखिये यत्प्राणेन न प्रणिति येन प्राणः प्राणीयते ॥ .. तदेव ब्रह्म वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ।। (केन३०१८) जिसका जीवन प्राणसे नहीं होता. परन्तु जिससे प्राणका जीवन होता है वह ( ब्रह्म) अात्मा है. ऐसा तू समझ । यह नहीं कि. जिसकी उपासनाकी जाती है।" अर्थात् श्रात्माकी शक्तिसे प्राण अपना सच कारोवार चला रहा है, इसलिय पाएकी शक्ति श्रात्मा ही है। इस विषयमें ईशोपनिषद्का मन्त्र देखने योग्य है योऽसावसौं पुरुषः सोऽहमस्मि ॥ (ईश० १६) योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम् ।। १७ 'जो यह (असी) असु अर्थात् प्राणके अन्दर रहने वाला है, वह मैं हूं।' मैं आत्मा हूं. मरे चारो ओर प्राण विद्यमान है और मैं उसका प्रेरक हूं। मेरी प्रेरणासे प्राण चल रहा है और सच्च इन्द्रियोंकी शक्तियोंको उत्तेजित कर रहा हूं। इस प्रकार विश्वास रखना चाहिये और अपने प्रभावका गौरव देखना चाहिये । इस विषयमें ऐतरेय उपनिषद्का बचन देखिये। नासिके निरभिद्यतां नासिकाभ्यां प्राणः प्राणाद्वायुः ।। (ऐ० उ० १४) श्राम अपना सब काकी जाती है, ऐसा न समास प्राणका
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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