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________________ लवे यज्ञ में सभी आवश्यक वस्तुओं को हामा जाने लगा। इसी कारण पशुओं को भी यज्ञ में होमा जाता था। जब इन नवीन श्रायों की विजय हुई और इनकी सभ्यना भी इस देश में फैल गई तो इनके धर्म को भी यहाँ के मूल श्राों ने अपना लिया और यहाँ प्राह्मण धर्मकी दुन्दुमि बजने लगी । परन्तु प्राय धर्म को अपना उस समय भी कायम बही। वर्तमान वेद उसी मिश्रित 1. मन्यसा के अन्य हैं ! उनमें कहीं तो मुक्त श्रात्माओं की स्तुति है। और कहीं अब देवताओं की तथा कहाँ वीर पुरुषोंकी स्तुति है। घरबाद वेदों के पश्चात् प्रचलित हुआ है । वेदों में वर्तमान इवरवाद की गन्ध भी नहीं है । वह तो उपनिषद् काल के बाद की कल्पना है, जो लोग बेदोंमेंसे वर्तमान ईश्वर सिद्ध करना चाहते हैं, यह उनका पक्षपात तथा हठधर्मीपना है या वेदानभिज्ञता । तीन प्रकार के मंत्र ताधिविधा ऋचः परोक्षकृताः प्रत्यक्षकृता आध्यात्मिकाच परीक्षकृताः प्रत्यक्षताश्चमन्त्रा भूयश्च अल्पश आध्यात्मिका: निरुक्त दैवत कांड । अर्थात्-निरुक्तकार कहते हैं कि मन्त्र तीन प्रकारके हैं, परोक्ष, प्रत्यक्ष तथा प्राध्यास्मिक। परन्तु परोक्ष और प्रत्यक्ष के "मन्त्र ही अधिकतर हैं और आध्यात्मिक मन्त्रों की गणना नहीं के बराबर है। जो भाई सम्पूर्ण मंत्रों में से ईश्वर का वर्णन विखलाते हैं उनको निरुक्तकारकी सम्मति देखनी चाहिये । निरुक्तकार तथा ‘मेद आध्यात्मिक से क्या अभिप्राय लेते हैं यह भी पढ़ने योग्य है। __ सप्त ऋषयः प्रविहृताः शरीरे सप्त रक्षन्ति सदमप्रमादम्
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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