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________________ ( १४ ) यह विचार नहीं करते कि जिसका जो उपाय है वह अपने उपास्य में सम्पूर्ण दिव्य गुणों का आरोप कर लिया करता है। अपनी बुद्धि की कल्पना शक्ति जितनी भी आगे पहुंच सकती हैं उसके अनुकूल वह उसे यहाँ तक ले जाकर अपने उपास्य की स्तुति किया करता है। इसका नाम स्तुतिवाद है। वस्तु स्थितिवाद इसके सर्वथा विपरीत होता है आज भी दुनिया का यहीं नियम है, आप किसी के उपास्य देव के विषय में उसके उपासक से पूछें ? वह आपको अपने उपास्य में सम्पूर्ण वही गुण बतलायेगा जीप शायद ईश्वर में भो न मानते हो। मसीह आज स्वयं खुद समझा जाता है तथा भगवान राम और भगवान कृष्ण के भक्तों से पूछो उनको भी यहां अवश्य है । यहीं क्यों आप जंगलो जातियों में जायें वे जग भूत, पिशाच को अपना उपाय मानते हैं। यहां व्यवस्था पूर्व समय में धो उस समय भारत में दो चम्प्रदाय थे । (१) आत्मवादी अर्थात् चैतन्य आत्मामें ही सम्पूर्ण शक्तियाँ मानता था । (२) देवोप, क यह सम्प्रदाय मि. सूख वरुण आदि जड़ देवों की उपासना करता था । 1 प्रथम आत्मोप सक सम्प्रदाय भारतीय आयों का था तथा दूसरा सम्प्रदाय पुरुरवा के समय बाहर से आने वाले आर्य अपने साथ लाये थे । प्रथम सम्प्रदाय वाले महापुरुषों के उपासक थे और नघोन अर्य याज्ञिक थे। ये याशिक लोग आत्माको शरीरसे प्रथक तो मानते थे परन्तु मुक्तिको नहीं मानते थे । वे केवल स्वर्ग को ही सब कुछ मानते थे और उस स्वर्गको सिद्धि यज्ञों से हो जती थी इसलिये न उनके यहाँ विशेष ज्ञानको आवश्यकता थीं न तप आदि की ही । इस लिये इन दोनों में बड़ा मतभेद था । इन याज्ञिकों ने यह सिद्धान्त निकाला था कि जो पदार्थ आप यज्ञ में होगे वहीं पार्थ आपको स्वर्गलोक में प्राप्त होगा। इसी
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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