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________________ लिखा है कि-सूक्त, ७-८ दोनों परस्पर सम्बन्ध है। दोनों में एकंभका वर्णन है। स्कंभ, खंभा, सहारा (सारे विश्वका ) परब्रह्म नाका भी आदिभूत, इसीसे इसको श्रेष्ठ ब्रह्म कहा है। सारा विश्व इसमें स्थित है, यह सारे विश्व में प्राविष्ट है, विराट भी इसीमें टिका हुआ है. इसी में सारे देवता स्थित है. यही सबके जीवनका मूलस्रोत है इत्यादि रूपसे कभका वर्णन है । ये दोनों सूक्त उपनिषदों में कही, अध्यात्मविद्याका मूल है, यहाँके यक्ष ( आश्चर्यमयी सत्ताका विस्तार केनोपनिषदें है।" ____ इस कथनसे यह तो सिद्ध होगया कि-ब्रह्मा, विराट, पुरुष, हिरण्यगर्भ आदि देवता कोई भी ईश्वरपद् वाच्य नहीं है. क्योंकि उन सबका निर्माण कर्ता ये स्कंभदेव हैं। अतः अब इन सूक्तोंमें जो स्क्रभ देवका कथन है क्या .वह वर्तमान ईश्वर अर्थका वांधक है। यही विचारणीय है । जब हम इन सूक्तों पर दृष्टिपात करते हैं तो हमें स्पष्ट ज्ञात होजाता है कि यह स्कम भी परमेश्वर नहीं अपितु जीवात्मा ही है। हम इन सूक्तोंमें से कुछ मन्त्र उपस्थिन करते हैं। यः श्रमात् तपसो जातो लोकान्त्सर्वान्समानशे । सोमं यश्चक्रे केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः ।। अ० १०७६३६ अर्थ-श्रम और तपसे उत्पन्न होकर जिसने सम्पूर्ण लोकोंको प्राप्त किया है (सम्पूर्ण इन्द्रिय आदिको प्राप्त किया है.) तथा जिसने सेाम ( सामरस ) को केवल ( अपने लिये) बनाया है, उस ज्येष्ठ ब्रह्मको हमारा नमः हो। इस मन्नमें स्पष्टरुपसे ज्येष्ठ । ब्रह्म उस ज्ञानीको कहा गया है जिसने महान परिश्रमसे तथा
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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