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________________ . | ३०० ; निरुकारने इन सूक्तोंके दो ही प्रकार के अर्थ किये हैं, अतः स्पष्ट है कि उस समय तक इन मन्त्रोंके अर्थ सृष्टिकर्त्ता ईश्वर परक नहीं थे। इसी प्रकार हिरण्यगर्भ' को भी यास्काचार्यने मध्यम स्थानीय (वायु) देवता हो माना है। जिस प्रकार यहाँ हैं ( तमिद् गर्भं प्रथमं दन आप उसी प्रकार वहाँ भी ( आपोद यद् बृहत विश्वमायन गर्भ दधाना जनयन्तोम्) मन्त्र उपरोक्त कथन अनुसार यहाँ भी यह सब कार्य वायु द्वारा ही होते हैं अस्तु अध्यात्म प्रकरण में भी निरुत्तकारने स्पष्टरूपसे विश्वकर्माका अर्थ जीवात्मा ही किया है। क्योंकि यही जीवात्मा 'विश्व' अर्थात् सबइन्द्रियोंकी रचना करता रहता है। अतः यह सिद्ध हैं कियह सूक्त भी वर्तमान ईश्वरका द्योतक नहीं है । ज्येष्ठ ब्रह्म व स्कंसदेव कुछ विद्वानोंका कहना है कि ब्रह्म आदि शब्दोंसे जीव था। दिका ग्रहण होता है, परन्तु वे पे ब्रह्म व स्तंभ आदि शब्दोंसे तो केवल ईश्वरका ही वर्शन किया गया है। हम प्रजापति, पुरुष, हिरण्यगर्भ व ब्रह्म आदि शब्दोंका तो विचार कर चुके, इन शब्दोंसे वैदिक साहित्य में ईश्वरका कथन नहीं किया गया। अब हम इन ज्येष्ठ ब्रह्म व स्कंभ, सूक्कों पर भी दृष्टिपात करते है अथर्ववेद को १० मुक्त और ८ भक्त हैं इसी का नाम यहाँ पेष्ट भी आया है। I १ अ इन दोनों सूक्तोंका विनियोग आदि नहीं मिलता. तथा न इस का किसी अन्य संहिता में कथन है तथा नही ब्राह्मण प्रन्थों में उसका उल्लेख प्रतीत होता है अतः यह सूक्त नवीनतर है यह निश्चित है। पं राजारामजीने अपने अथर्ववेद भाध्य में
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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