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________________ वास्तविक अर्थ तपसा चीयते ब्रह्म ततो अन्नमभि जायते । अन्नात्राणो मनः शा लोकाः कर्मा वामृता ।। १।८ अर्थात्---यह आत्मा तपसे कुछ फूलसा जाता है । पुनः उससे अन्न उत्पन्न होताहै और अन्न से प्राण, मन, सत्यलोक; और कर्म आदि उत्पन्न होते हैं। तथा कर्मसे अमृतनामक कर्मफल ( देवयानि) प्राप्त होता है। यही इस पुरुषका अन्नसे बढ़ना है। यहाँ अन्नका अभिप्राय कारण प्रारणसे है जिसको भाव प्राण कहते हैं । उससे अन्यप्राण, मन, सत्वलोक, आदि सूक्ष्म और स्थूल इन्द्रियाँ तथा स्थूल प्राण उत्पन्न होत है । तथा च--- स वा एप महानज श्रात्मान्नादो वसु दानो विन्ददे वसु य एवं वेद । वृ० उ०४ । ४ । २४ ___अर्थान-यह महान आत्मा, अन्न भक्षी; और कर्मफल देने वाला है । जो ऐसा जानता है उसे सम्पूर्ण काँका फल प्राप्त होता है। मूलमें वमु दान' शब्द है जिसका अर्थ धन दाता होता है, परन्तु श्री शंकराचार्य एवं श्री रामानुजाचार्य श्रादिने इसके अर्थ कर्मफल दाता किये हैं: अतः हमें कुछ आपत्ति नहीं है। और जो भाध्यकारों ने यहाँ कर्मफल दाता अर्थ करके ईश्वर परक अर्थ किया है वह सर्वथा भ्रममात्र है। क्योंकि वैदिक वांगमयमें कहीं भी कर्म फलके लिये ईश्वरकी आवश्यक्ता नहीं मानी गई है । तथा उपरोक्त अतिमें भी इस श्रात्माको अन्नाद अर्थात् 'अन्न रचनेवाला कहा है
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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