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________________ सस्कृतमें था 'प्राणिनां भोग्येन जीवति' अर्थात--प्राणियोंके भोग्यसे जीता है। उसीको भाषामें लिखा है "जो कुछ अन्नसे उत्पन्न होता है।" ग्रह भेद क्यों किया गया है यह उनकी दिवंगत आत्मा ही जानती होगी। सायणाचार्य "अन्नेन प्राणिनां भोग्येन निमित्तेनाति रोहति स्वकीयां कारणावस्थामति क्रम्य परिदृश्यमानां जगदवस्था ग्रामोति" ___ अर्थात--प्राणियोंके भोग्यके निमित्तसे स्त्रकाय कारण अवस्थाका त्यागकर यह पुरुष स्थूल जगद्वस्थाको प्राप्त होता है। प्राणियोंके कर्मफलके देनेके लिये उसने कार अवस्था प्रहण की है परन्तु इसकी यह अपनी निज अवस्था नहीं है । महीधर---ने सायणाचार्यकी नकल मात्र की है। उवट-आपने लिखा है कि"यत अन्नेन अमृतेन, अति रोहति अति रोध करोति" अर्थात--आपने अन्न का अर्थ अमृत किया है तथा अति रोहतिका अर्थ प्रतिरोध किया है। अभिप्राय यह है कि जितने भाष्य उतने ही अर्थ। परन्तु दुःखसे लिखना पड़ता है कि ये सब भाष्यकार केवल अन्धेरेमें पत्थर फेंक रहे हैं।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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