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________________ भावार्थमें लिया है कि-"जो पृथिवी श्रादिके सम्बन्धसे अत्यन्त बढ़ता है।" ___ संस्कृत में तो अन्नसे अत्यन्त बढ़ता है. यह पुरुषके साथ सम्बन्धित था किन्तु भाषाकारोंने आरोहति क्रियाका कर्ता जगत को बना दिया । जो कुछ भी हो यह बात पं० सातवलेकरजीको खटकी अतः उन्होंने इसका अर्थ किया है कि-"यन् जो अमर पन ( अन्नेन ) अन्नके द्वारा (प्राप्त होने वाले सुखसे ) (अतिरोहति ) बहुत ही उपर ऊँचा है।" तथा च यहाँ ( प्राप्त होने वाले सुखसे ) इस पदका अध्याहार भी किया गया है। तथा च सूक्तके भाष्यमें एवं आगे सूतके आशयमै, शंकरमतके (अद्वैत) की पुष्टि की गई है। (वेद-परिचय) भाग, २। पं० जयदेवजी विद्यालंकारने सामवेद भाष्यमें लिखा है कि___यही अमरजीव इस संसारका स्वामी है जो अन्नद्वारा कर्म फल भोगके द्वारा (अतिरोहति) मूलकारणसे कार्यको उत्पन्न करता है। अर्थात् ससारको उत्पन्न करता है।" आपने बारीहति' का अर्थ उत्पन्न करता है करके पहले की सम्पूर्ण भूलोंको सुधारनेका प्रयत्न किया है। तथा सामवेद भाष्यम, पं० तुलसीरामजीने लिखा है कि "( यत ) ( अन्नेन) प्राणिना भोग्येन (अति रोहति) जीवति तस्य ( उत) अमृत ( वस्य) मोक्षस्य (ईशानः) अधिष्ठातापि स एव ।" . भाषामें लिखा है कि--"जो कुछ अन्नसे उपजता है, उसका और मोक्षका अधिष्ठाता परमात्मा ही है।"
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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