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________________ ( २८६ अर्थ - "यह पुरुष पहले हृदयाकाशमें स्थित परिच्छिन्न रूप चाला था, पुनः अपने अनुष्टित यज्ञ द्वारा सर्वाति शायिरूप वाला होगया ।" अभिप्राय यह है कि यह आना अपने तप आदि मुक्त हो गया. उसी मुक्त आत्मा परमात्माका यह पुरुष नामसे वर्णन है । यह तो हुआ परमेश्वर परक अर्थ तथा जीवात्मा परक अर्थ भी इसके किये हैं। जिसका उल्लेख हम अगले मन्त्रों के अभिप्रायों में लिखेंगे। पुरुष शब्दका उपरोक्त अर्थ ही उपनिषद में किया है। जैसा कि हम पहले लिख चुके हैं। अतः स्पष्ट है कि यहाँ परमेश्वर पुरुष आदिका अर्थ मुक्तात्मा है। तथा च यह वर्णन संसारी आत्मा का भी माना जाता है । ये दोनों ही अर्थ हमें अभिष्ट हैं। तथा च जां विद्वान इसका अर्थ काल्पनिक ईश्वर परक अर्थ करते हैं वे सब प्राचीन मर्यादाके विरुद्ध होनेसे त्याज्य हैं । यह तो हुआ प्रथम मन्त्रका अर्थ — अब इसका दूसरा मन्त्र लीजिये | मन्त्र में लिखा है कि " यदन्नेनाति रोहति" यह पुरुष अनसे बढ़ता है। अतः स्पष्ट है कि यह अन्नसे बढ़ने वाला ईश्वर नहीं हो सकता । अतः स्वाः दयानन्दजी इसका अर्थ करते हैं कि- " ( यत् अन्नेन ) पृथिव्यादिना ( अति रोहति ) अत्यन्तं वर्धते ।"
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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