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________________ कालसे कालोह ब्रह्म भूत्वाविभर्ति परमेष्ठिनम् । अथवेद का० १६१५३।६-१० कालः प्रजा मसृजत कालो अग्रे प्रजापतिम् । स्वयंभू कश्यप कालात् तपः कालाद जायत । कालादपिः समभवन कालाद् ब्रह्म तपोदिशः । कालेनोदेति सूर्य काले निविशते पुनः॥ प्र० का १४ । १ अर्थ-कालभक्त कवि कहता है, कि-काल हो ब्रह्म बनकर परमेष्ट्रीका भरणपोषण करता है। कालने ही प्रजाओंको उत्पन्न किया, उनीने प्रथम प्रजापतिको उत्पन्न किया. उसीने स्वयंभूको उसीने कश्यपको उत्पन्न किया. तथा कालसे ही तप उत्पन्न हुआ। तथा च कानसे अल उत्पन्न हुये. काल ही से ब्रह्मा, तप. दिशायें, आदि सब संसार उत्पन्न हुआ । कालसे ही सूर्य उदय होता है। तथा उसी में विलीन होजाता है। अभिप्राय यह है कि जिन देवताओंको परमेश्वर बताया जाता है, उन सबकी उत्पत्ति यहाँ बताई गई है। अतः प्रजापति, ब्रह्मा, परमेष्टी, धाता, विधाता, आदि देव ईश्वरके योधक नहीं हैं. क्योंकि ये सब अत्पन्न हुये हैं, और मरण धर्मा हैं। तथा कोकिलेश्वर भट्टाचार्यः एम० ए० ने अपने उपनिषदके उपदेश के खंड ३ में, घेदान्तभाव्यमेंसे एक पंक्ति उद्धृत की है, जिसका अर्थ है कि-"मनुष्य आदिमें { साधारण पुरुष में ) तथा
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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