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________________ हैं, तत्व यह है कि ) कि उस हिरण्यगर्भ को पहले स्तंभने ही लोक के अन्दर डाला ।' सारांश यह है कि-अथर्ववेदके समय अनेक नये देवताओंका आविष्कार हुआ था. उनमेंसे एक यह स्तंभ भी है। संभवतः यह शुद्धात्मभावका द्योतक है । तथा पुरातन प्रथाके अनुसार इस स्कंभ भक्तने भी स्कंभकी स्तुति करतेहुए अन्य सभी देवताओं को निकृष्ट यताया है। तथा च उमने कहा कि जो लोग हिरण्यगर्भको परमात्मा आदि मानते हैं यह उनका भ्रममात्र है. वास्तव में स्कंभ ही सबसे बड़ा देव है, उसीले प्रजापति आदि सब देवोंकी रचना की है। यदि आत्मपरक अर्थ करें तो भी प्रजापति आदि वर्तमान ईश्वरका स्थान ग्रहण नहीं कर सकते। क्योंकि उस अवस्था में प्रजापति, मनु आदि इन्द्रियोंके वाचक सिद्ध होंगे। अतः उपरोक्त मन्त्रोंसे यह सिद्ध है कि प्रजापति, हिरण्यगर्भ आदि नामोंसे वेदों में परमेश्वरका कथन नहीं है। तथा च यो देवानां प्रभवश्वोद्भवश्च । विश्वाधिमो रुद्रोमहर्षिः । हिरण्यगर्भ जनयामास पूयम् । सनो बुद्धथा शुभया संयुनक्तुः ॥ श्वे. ३०।४। रुद्रकी स्तुति करते हुए ऋषिने कहा कि रुद्र ही देवोंकी उत्पत्ति आदिका कारण है बहो रुद्र मर्षि संसारका एक मात्र कारण है उसीने प्रथम हिरण्य गर्भको उत्पन्न किया था। वह रुद्र हमको शुभ बुद्धि से युक्त करे। यहाँ महर्षि विशेषण लगाकर रुद्रको भी मनुष्य सिद्ध किया गया है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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