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________________ ( २५६ । हिरण्यगर्भ आदिमें, ज्ञान, ऐश्वर्य आदिको अभिव्यक्ति की उत्तरो उत्तर विशेषता होती है। अर्थात् जैसे जैसे चात्मा के आवरणों का क्षय होता है वैसे वैसे ही उसके ज्ञान आदिको अभिव्यक्ति होती जाती है। यह अभिव्यक्ति हिरण्यगर्भ प्रजापति आदिमें संधिक होती है।" : ( तथा मनुष्यादि गर्भ पर्यन्तेषु ज्ञानेश्वर्याद्यभि व्यक्तिः परेण परेण भूपसी भवति । वे०मा० ११३ | १०१ मनुष्य शरीर धारी इससे स्पष्ट सिद्ध है कि ये हिरएय गर्भ व्यक्ति विशेष है. परमेश्वर नहीं । तथा च ब्रह्मादेवानां प्रथमः संवभूव । विश्वस्य कर्ता भुवनस्यगोसा । ० ३० । १ । १ । अर्थात् सम्पूर्ण देवताओं से पूर्व अथवा श्रेष्ठ ब्रह्मा हुआ। वह इस जगतका स्रष्टा तथा पालन पोषण करता था । इस पर शंकराचार्यजी लिखते है कि- "यस्य गोप्ता पालयितेति विशेषणं ब्रह्मणो विद्यास्तुतये" अर्थात् - गोता पालयिता विशेषण ब्रह्मा की विद्या स्तुति के लिए है । अर्थात् यह वास्तविक नहीं है। अपितु उसकी प्रशंसा मात्र है, अथवा उसने उपदेश द्वारा जगत की रचनाकी और उसका पालन-पोषण किया । तथा त्रिदेव निर्णय में श्रार्य-समाज के प्रख्यात वैदिक विद्वान पं० शिवशंकर जी काव्यतीर्थं लिखते हैं कि- "यहवा ऋषि की प्रशंसा मात्र है। निःसंदेह विद्वान लोग अपनी विद्या से जगत के कर्ता गोसा होते हैं।" अतः स्पष्ट है कि वेदोक्त, हिरण्यगर्भ प्रजापति, ब्रह्मा पुरुष, निराकार ईश्वर नहीं। तथा उनका सृष्टि यदि मनुष्य ही हैं. कर्तृत्व कथन उनकी
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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