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________________ ॐकार की चार मात्राओंसे उक्त चार अवस्थाएँ जानी जाती है. इसलिथे ॐकार आत्माका वाचक है, यह उक्त क्वनों का तात्पर्य है। हरएक गीत जागतिक मासुमन लेता है और मुरिकी स्थिति भी देखता है। इन तीन अवस्था ओंका जो अनुभव लेता है, वह तीनों अवस्थाओंसे भिन्न है, अतः उसकी चतुर्थ (तुर्या) अवस्था है. और शुद्ध श्रात्माका वही स्वरूप है । जागृति, स्वप्न और सुषुप्तिका अनुभव प्रतिदिन हरएक जीव लेता है, परन्तु तुषिस्थाका अनुभव अानेके लिये नाना प्रकारके योगादि साधन करना आवश्यक है। समाधि-सुषुप्ति-मोक्षेषु अमरूपता । ( सांख्यदर्शन ) "समाधि. सुषुप्ते और मुक्ति में प्रारूपता होती है ।" यह दर्शनोंका सिद्धान्त है। इस सिद्धान्तका वोधक वाम्य इक्त उपनिषदें (अपातः) एक हो जाता है" अर्थात निःसंग. मुक्त हो जाता है; यह है। इससे पाठकों को पता लगेगा, कि उक्त चार अवस्था जीवात्मा की है. हरएक जीवात्मा इन अवस्थाओंका अनुभव प्रति दिन लेता है, इसलिये इस विषयमें शंका ही नहीं हो सकती। जिस कारण इन चार अवस्थाओंक निदर्शक चार अक्षर ॐकारमें हैं, उस कारण भोकार जीवात्माका वाचक है। इसमें कोई शंका नहीं हो सकती । अस्तु. इस प्रकार कारका अर्थ जीवात्मा और परमात्मा ,मुक्तात्मा) है. यह हमने देखा; तथापि अधिक दृढ़ताके लिये कुछ और भी बचन देखेंगे।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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