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________________ । २५ ॥ सोऽयमात्माऽध्यक्षरमकारोऽधि पात्र पादा मात्रा मात्रश्च पादाप्रकार उकारो प्रकार इति ॥ ॥ जागरित स्थानो चैश्वानरोकार प्रथमा मात्राप्रादिमत्वाद्वाप्नोति ॥ ६॥ स्वम स्थानस्तै जस उकारो द्वितीया मात्री स्वाद्वा० ॥ १० ॥ .सुषुप्तस्थानः प्राज्ञो सकारस्तृतीया मात्रा मितेरपीते ०११ अमात्रश्तुप महार्यः प्रपंचोपशमः शिवाजीत ए. मौकार प्रात्मैव संविशत्यात्मनात्मानं य एवं वेद ।। १२ ।। (मांडूक्य-उपनिक) "ॐकारकी चार मात्राएँ और आत्माके चार पाद परस्पर एक दूसरेसे संबंधित हैं। मात्राओंसे पाद और पादोंसे मात्रा अकार उकार और मकार परस्पर संबंधित है। अकार पहिली मात्रा है. इसका जागृति स्थान वैश्वानर माप है। यह पहिली मात्रा (कारमें ) है। यह अकार माबमें आदि और सबमें व्याप्त है। दूसरी मात्रा उकार है, इसका स्वप्न स्थान है, और नजस् स्वरूप है, यह उत्कर्षका हेतु होती है और उभय स्थानोंअर्थात एक ओर जागृति और दूसरी और सुषुनिके साथ संबंध रखती है । मकार तीभरी मात्रा है. इसका सुषुप्ति स्थान और प्राज्ञ म्वरूप है. यह सबको नापता है, और एक हो जाता है । चतुर्थ मात्रासे जो दर्शाया जाता है, वह अव्यवहार्य, प्रपंच की शांति करने वाला शिय, अद्वैन है. इस प्रकार प्रकार आत्मा ही है. जो यह जानना है. वह स्वयं आत्मामें ही प्रविष्ट होता है।" : . अउ. म् . अर्ध मात्रा" ये ओंकारक चार पाद हैं। और जागृत स्थान, सुयुमि और तुर्या ये चार अवस्था आत्माकी हैं।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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