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________________ - ईश्वर का अवतार-विग्रह भी दिव्य और प्राकृत ही होता है, किन्तु दर्शकोंको उसको मानवता [भौतिकता ही प्रतीत होती है। श्रीभगवानकी अघटनघटनापटायमो योगमायाके वैभव और चमत्कार कौन जान त ? साई लोकपिटमार अह्मवेषको श्रीकृष्णभगवानकी बाल-लीला देखकर उनकी ईश्वरतामें सन्देह हो गया था। श्रीभगवान ने अपने श्रीमुखसे यही कहा है . नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायाजमावृतः। . ...श्रीमान...अपने श्रीविग्रहमें हमारा अनुराग नित्य-नुतन चनाये रकर।" ___इस लेम्समें विद्वान लेखकने ईश्वर और देवताओंका स्पष्टरूप से भेद बता दिया है। तथा वेदने भी यह घोषित किया है, कि अग्नि देवता है न कि ईश्वरः या ईश्वरकी शक्तियाँ। और न साधक भेद से ही देवताओंका भेद कहा गया है. ये सब निराधार कल्पनायें हैं । वैदिक साहित्यके मननसे यह सिद्ध होजाता है, कि इस देवतयादकी नीन अवस्थायें हैं। . (१) सबसे प्रथम ये साधारण जड़ पदार्थ ही हैं। (२) उसके पश्चात इन जड़ पदार्थों में ही विशेष शक्तियोंकी अथवा अलौकिक शक्तियोंकी कल्पना की जाने लगा। (३) इन्हीं जड़ पदार्थाका पृथक पृथक अभिमानी चनन देवता माना जाने लगा। तथा प्रत्येक बैदिक कवि अपने अपने देवताको सर्वश्रेष्ठ व मधकती. व सब देवांका अधिनि. सिद्ध करने के लिये सूनोंकी रचना करने लगा। इसी को मीमांसाको परिभाषा अर्थवाद कहते है। .. : माज भी भक्तजन अपने अपने उपास्यकी स्तुमि करते समय
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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