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________________ ( २२८ ) अपने उपास्यमें उन सर्व गुणों का आरोप करते हैं, जिनको कि अन्य उपास्य में माने जाते हैं। दृष्टान्त के लिये हम विष्णु संयम और जैनों के प्रथम तीर्थ कर आदिनाथ जी के १००८ नामों को ले सकते हैं । उपरोक्त सभी उपायों के नाम व काम आदि एक से ही कहे गये हैं, परन्तु इतने मात्र से वे सब एक नहीं हो जाते। इसी प्रकार प्रत्येक उपासक, सभी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं को भी अपने उपायके साथ नत्थी कर देता है | जैसे कि भगवान महावीर के साथ सीता की अनि परीक्षा और द्रोपदी के वीर बढ़ने की घटना को नत्थी कर दिया जाता है। एक भक्त भगवान महावीर की स्तुति करते हुये आनन्द में मन होकर "सीता प्रति कमल रचाया. द्रोपदी का चीर बढ़ाया " आदि पद गाता है, यद्यपि उपरोक्त घटनायें महावीर भगवान के हजारों व लाखों वर्ष पूर्व की हैं। इसी प्रकार वैदिक समय में भी सम्पूर्ण महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं को भक्तजन अपने अपने उपास्य देवता के साथ नत्थी करते रहते थे। जिस प्रकार उन नामों के एक होने से तथा चीर आदि बढ़ाने की घटनामों के नत्थी करने से सब महा पुरुष एक नहीं हो सकते उसी प्रकार एक प्रकारका वर्णन होनेसे वैदिक देवता भी एक नहीं हो सकते । तथा न वे एक द्रव्य की शक्तियां ही हो सकती हैं। देवोंकी मूर्तियां वैदिक समय में 'इन्द्र' आदि देवों की मूर्तियां भी बनती थी तथा उनकी पूजा होती थी। तथाच उन मूर्तियों को रथ पर बिठाकर उनके जलूस निकाले जाते थे । संहिताओं के हजारों मन्त्रों में जो इन्द्र का रथ में बैठाना व उसका वस्त्र तथा आभूपण आदि पहनने का जो उल्लेख हैं. वह उत्सवोंमें मूर्तियों के
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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