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________________ -. . ... 'आत्मैवेदमन आसीत्पुरुषविधः' (वृहदारण्यक ४।११ किन्तु यह आकार घनीभूत प्रश्न ही हैं, अतएव उसकी रचना साशमें मानवदेहके संघटनके समान ही मानना नितान्त अनुपयुक्त है । वह पार्थिव-शरीरोंसे ही क्या, प्राकृतिक तेजस-शरीरोंसे भी अत्यन्त विलक्षण है । वह सत्य, शिव और मुन्दर है। वह निरनिशय सौन्दर्यका आकार है, दिव्य माधुर्यका आधार है, परम लावण्यका आगार है, और अनवधिक वात्सल्यका पारावार है। श्री भगवान सर्वशक्तिमान हैं। वे सब कुछ कर सकत है। वे प्राकृत शरीर धारण कर सकते है, किन्तु किया नहीं करते। जिस प्रकार गंगा-जन में स्नान करके पूजाके आसन पर सन्ध्योपासन के लिये विराजमान काई ब्रह्मर्षि काक-विष्ठा से ऊर्ध्वपुण्ड लगा सकनेकी शक्ति और योग्यता होनेपर भी बैंसा न करके गोपी-चंदनसे ही ऊर्ध्वपुण्ड लगाया करता है, उसी प्रकार श्रीभगवान् प्रकृतिके विकृतिरूप पंचभौतिक शरीर धारण नहीं किया करते हैं प्रकृतेर्विकते रूपं भूतसंघातनामकम् । शरीरं सत्यसंकल्पपुरुषस्येच्छयापि न ॥ .. सम्बन्धोऽपुरुषार्थत्वाज्जीवानां तु म्वकर्मणा । सुखदुःखादिभोगार्थ बलाद् देहोऽपि युज्यते ॥ छेहः स तु स्वाभिमतः स्वानुरूपः सदोज्ज्वलः । अप्राकतो हरेस्तेन न दोषो कोऽपि युज्यते । (श्रीभाष्यवार्तिकम)
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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