SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २१४ ) मुख्यता दिखलाई देती है। जंगली लोगों में मांना (mana) और (tabco)की जो कम्पन मिलता है, वहीं हिन्दू-धर्म में शेष बच रही हैं। गाय, गोमूत्र, गोवर ब्राह्मण गंगोदक, सुवर्ण च्यादि धातु, पीपल, तुलसी आदिके स्पशंसे पवित्रता प्राप्त होती है. और शूद्र अन्त्यज्ञ, रजश्वला गरंभ, काक, प्याज लसुन, गाजर, बैंगन आदि के स्पर्श से अपवित्रता आती है। स्मृतियों की यह कल्पना जंगली अवस्था में टाचू और माना की कल्पनाओं का विस्तृत रूप हैं । स्मृतियों के भज्ञान और हास्य विवेक को बहुत कुछ इस मूर्खतापूर्ण विश्वास में ही गिनना चाहिये । भेट feng कुछ निसर्ग-वस्तुएँ अथवा उनकी प्रतिकृतियाँ पहिले से ही पूजनीय हैं, और कुछ उत्तर कालीन उदात्त-धर्मके संस्कारसे कुछ परिवर्तन होकर पूज्य हो गई हैं। जैसे- गरुड़, बैल और बन्दर | गरुडको विष्णुका और वैलको शिवका बाहुन मानकर और बन्दरको रामका दूत समझ कर लोग पूजते हैं । वस्तुतः मूल में ये स्वतन्त्र रूपसे पूज्य थे। नन्दोकी पूजा तो हिन्दू स्वतन्त्र रूप से भी करते हैं। बहुत से हिन्दू मारुतकी पूजा भी स्वतन्त्र रूपसे करते हैं। वृक्ष सूर्य पर्वत पृथ्वी, नदी और ग्रहों की पूजा अत्यन्त प्राचीन कालसे अब तक बिना किसी अन्तर चालू है। पशु-पक्षियोंकी पूजा की जड़ प्राथमिक अवस्था में मिलती है जिस समय मनुष्य को अपने आस-पास के पशु-पक्षी अपनी अपेक्षा समर्थ और श्रेष्ठ जान पड़ते हैं। उस समय यह पूंजा शुरू होती हैं। जब यह मनुष्यको ज्ञान हो जाता है कि उसका स्थान प्रकृतिके इतर प्राणियों की अपेक्षा श्रेष्ठ है. तभी उसमें भवितव्य पर सत्ता चलाने वाली और अपनी कक्षा से बाहर की शक्तियों में अर्थात् देवताओं में पशु पक्षियोंके गुणांका आरोप करनेकी प्रवृत्ति कम होने लगती है। मनुष्यनं बंदर सिंह हाथी, गरुड़, :
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy