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________________ नाग, बैल, वराह, श्रादिक कप अथवा अवयव धारण करने वाले देवताओंको मनुध्यकी महान सामर्थ्यको अच्छी तरह समझनेसे पहिले उत्पन्न किया था। जब मानव-संघ स्थिर राष्ट्र और स्थिर समाजके रूप में बढ़मूल होगया. तब उसने मनुष्य देहधारी और मानल-गुण-युक्त देव मानव-बुद्धिमे अवतरित किये। विद्या और कलाके योगस जिसने अपने आस-पासकी सृष्टि पर आधिपत्य जमा लिया और अपने गुरमीक मांगल्तको जिम प्रतीत हागाई, ऐसे मनुष्यने मनुष्य सदृष्ट्य देवता बनाए। पशु. पक्षी, नदी, पर्वत, अग्नि, सूर्य, आदि देवताश्रीका घाा स्वरूप ज्योंका त्यों रखकर भी उनका अन्तरंग मानवी-विकारी-विचारोंसे भरा हुआ है। गली कल्पना वह करने लगा। मानवाका मानवी पराक्रम ही अतिशयोकिके साथ देवताओम दीखने लगे। इस स्थिति तक श्राने के लिये मनुष्य-जातिको युगके युग बिताने पड़े। पशु-पक्षी मरीमृप पाषाणा आदि वस्तुओं के समान ही अग्नि सूर्य वर्षा, वायु आदि निमग देवता वास्तविक कार्य-कारण मात्र के अज्ञान से अस्तित्वमें पाए । दायानल तीन. मूर्योदय, श्राधी अतिवृष्टि, अनावृष्टि, समुद्रका चार-भाटा रम्यं चंद्र का उदयास्त श्रादि की गूढता के कारण देवताओं की कल्पना निर्माण होने तक अशक्य ही थे । तब तक मनुष्य को एक या अनेक देवताओं की कल्पना पर निर्वाह करना पड़ा। पूजा करना, यन्न करना, और प्रार्थना करना ही उस परिस्थितिमें तरणोपाय था, और यही उस समयका धर्म था। भूत-पूजा या पितृ-पूजा तीसरा धर्म है संघके बड़े-बूई मनुष्यों के अधीन छोटोका जीवन निर्वाह होता है। संघके बड़े-बूढ़ ही उनके जीवनके लिये सारी तैयारी कर देते हैं। उनका अधिकार छोटोपर रहता है । संघके उक्त बड़े मुखिया जब मृत्युके मुंहमें जा पड़ते हैं
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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