SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 95 ) · गणपति अथवा शिव के नाते अब भी चालू हैं। अर्थात एकेश्वरी- भक्ति सम्प्रदाय में उनका प्रतीक के रूप में उपयोग होता है । परन्तु उक्त वस्तुएं असल में गणपति अथवा शिवस्त्ररूप से पुज्य नहीं थीं उनको स्वतन्त्र ही पूज्यत्व प्राप्त था. पीपल, वड़, आँवला आदि वृक्षोंकी पूजा तंत्र भी मूल कल्पनासे ही की जाती है। यद्यपि पुराणोंने उन वस्तुओं का स्तोत्रम विकसित के देषो विष्णु शिव आदि सम्बन्ध जड़ दिया है, परन्तु उनका अभी टिक रहा है। नाग और गाय अब भी बिलकुल स्वतन्त्र देव बने हुये हैं। मत्स्य कच्छप सिंह बाघ गरुड़, हंस. मयूर आदिकी पूजा यद्यपि नहीं की जाती, तो भी उनकी प्रतिकृतियोंकी पूजा रूढ है। सूर्य चंद्र मंगल आदि नव ग्रह की आराधना और साधना तो विश्वमान हिन्दूधर्मकी महत्वपूर्ण वस्तु है। पंडित मदनमोहन मालवीय जैसे हिन्दु नेता गाय और तुलसी की पूजाको हिन्दुधर्मका उदात्त लक्ष्य प्रतिपादन करते हैं। इस निसर्ग-वस्तु पूजाका आरम्भ प्राथमिक जंगली अवस्था में कुल लक्षण-पूजा ( Tobemism ) अथवा देवक-पूज. से होता है। ब्राह्मणो घर विवाह और उपनयनसंस्कारमै पहिले देवक-स्थापना की जाती है। यह देवक (अविनकलश) की मिट्टीका ( घड़ा ) होता है। जो ब्रह्मणोंकी जंगली अवस्थाका अवशेष है। इस कुल-लक्षण - पूजाबादका स्वरूप पहले व्याख्यानमं विवृत किया गया है। विशिष्ट जड़-वस्तु-विशिष्ट पशु. विशिष्ट पक्षी, आदि कुछ न कुछ शुभाशुभकारक सामध्य हाता है. इस दृष्टि से यह पूजा उत्पन्न होती है। कुछ वस्तुएँ शुभ-सूचक और कुछ वस्तुएँ अशुभ सूचक हैं। यह कल्पना अज्ञानता में ही उत्पन्न होती है. ऋग्वेद और अथर्ववेद कल्पना है कि कोमा और कपोतका दर्शन मृत्य-सूचक है। विशिष्ट पदार्थों या जातियों के दर्शन या स्पर्शन से पवित्रता होती है. स्मृतियोंमें इस कल्पनाकी
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy