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________________ चित्त-शुद्धि सात्विक आचरणसे, संगमसे. और सत्य-अहिंमा अस्तेय, आदि नैतिक आचरणोंसे होती है. इस तत्ववाद सम्प्रदायमें जैन और बौद्ध तत्वोंके ज्ञामाका अन्तभाव होना है। ये सम्प्रदाय भी ईश्वर अस्तित्व को नहीं मानने । __ हिन्दू धर्मकी समीक्षा पृष्ठ १११-११३ 'यातु विद्या और धर्म' 'सुवर्ण-शाखाकी पहिली श्रावृत्तिमें फ्रजरने लिखा है कि जादू (magic) धर्मको बिल्कुल पहिली अवस्था है। बहुत-सी जंगली जातियोंकी यातु-विधिमें मूर्त-जीव-वादकी कल्पना नहीं रहती। उनमें इस कल्पनाका देरसे प्रवेश हुश्या है । इसीलिए. जादुको धर्मकी पहिली ही अवस्था बनलाया गया है, उक्त ग्रन्थके दुसरे संस्करणमें फ्रजरने यातु-विद्याको विज्ञानकी पूर्वावस्था कहा है। मृष्टिकी शक्तियों पर अधिकार करके उनको अपनी इष्ट-सिद्धि के लिए विनियोग करना विज्ञानका उपयोग है. जादूका उद्देश्य ही ऐसे कार्य करना है। विज्ञान निसर्गके नियमों पर निर्भर करता है । विज्ञानको भरोसा रहता है, कि निसर्गके नियमोंको योग्यरीतिसे काममें लाया जाये तो वह निश्चय ही फलदायी होगा। जादूगर भी अपने मंत्र, तंत्र, यंत्रों पर और उस क्रियासे संबद्ध प्रकृतिकी वस्तुओंके स्वभाव पर ऐसा ही निर्भर रहता है। जब जादूकी व्यर्थता की खातिरी हाने लगी, या जानकारी होने लगी तब धर्म उत्पन्न हुआ। प्रकृतिकी अलौकिक शक्ति लहरी स्वभात्र की है, उसका कुछ ठिकाना नहीं। उसकी शरण में जाना चाहिये, यही भावना धर्मको जन्म देती है । प्रोजरने धर्म और जादुकी विषमता पर और जादूकी समानता पर जोर देकर धर्म, जादू और विज्ञानको मनोविज्ञान बतलाया है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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