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________________ (208) [] यक्ति ( magic ) नहीं तत्व है । उसका ज्ञान हुआ किं मनुष्यका जीवन कृतार्थ हो गया। उसके ज्ञानके लिये धार्मिककर्म-कारकी अपेक्षा संयम, शान्ति, उदारता आदि गुणोंकी ही अधिक आवश्यकता है, स्वर्ग, मोक्ष, सुगति, दुर्गति आदिके कर्ता कृपालु, दयाघन परमेश्वरकी अपेक्षा ब्रह्म अव्यक्त है । क्योंकि वहाँ अहंभाव या व्यक्तित्व नहीं हैं । हिन्दू धर्म में उतम लक्षण एकेवरवाद है. सर्व जगतका - शास्ता और सर्व- शक्तिमान अन्तरात्मा ही एक परमेश्वर है. बाकी सब उसके आधीन है। इस सिद्धान्तको एकेश्वरवाद कहते हैं। शेर और वैष्णव सम्प्रदायोंका यही सिद्धन्त है। परमेश्वरकी भक्ति अनायसे करना शरण जाना ही मनुष्य द्वारका एक मात्र मार्ग हैं। सत्य. अहिंसा क्या परोपकार, इन्द्रिय-दमनके योग से परमेश्वरकी सभी भक्ति सघती है। इसलिये ये नीति-तत्व-धर्म गर्भमें हैं । परमेश्वरकी कृपा से ही सुख और श्रेयस और अकृपासे दुःख और अधोगति प्राप्ति होती है! यह भावना उपनिषदों (छन्दोग्योपनिषद् और श्वेताश्रतनिषद्) के कुछ स्थानों में दिखाती है। एकेश्वरवादी सम्प्रदाय मूलमें are है। -कर्म-काण्डसे और औपनिषद् ज्ञान-मागंसे असम्बद्ध कई अवैदिक सम्प्रदाय प्राचीन काल में थे । उनमें से ही वैष्णव, शैव, शाक्त आदि एकेश्वरवादी सम्प्रदाय उत्पन्न हुये हैं । भगवद्गीता वासुदेव ( भागवत ) सम्प्रदायका वैदिक मार्ग से समन्वय होने पर तैयार हुई है । · हिन्दू धर्मकी तीसरी उच्चतम शाखा तत्वाद है। कपिल सांख्यका प्राचीन सम्प्रदाय इस वादका मुख्य प्रतिनिधि है 1 यह ईश्वरका अस्तित्व स्वीकार नहीं करता है । मनुष्य आत्मा की जानकारी प्राप्त करके ही मुक्त होता है। यह उसका मुख्य सार है । तत्वोंकी जानकारी शुद्ध-चित्तसे होती है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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