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________________ ( २०८ ) यानी निर्माण शक्ति, विष्ण यानी रक्षण शक्ति और रुद्र यानी महार शक्तिके रूपसे देवताकी उपासना नाग अंथों और पुराणोंके तात्विक निरूपणमें कही गई है। इससे देवताको सूक्षम खरूप प्राप्त हुआ है। देवताप्रामें मनुष्यता का या सूक्ष्मताका प्रारोप करने वाला हिन्दू धर्म श्रुति-स्मृति-पुराणों में मुख्यतासे अणित है इन देवताओं का परस्पर सम्बन्ध जोड़कर उनकी भक्ति करने वाला अथवा उन देवताओंमेंसे किसी एक देवताको चुनकर उसे ही सर्वशक्ति सत्ता देने वाला धर्म ऋक्दमें प्रगल्भ दशाको पहुंचा हुश्रा दिवाई देता है। हिन्दू-धर्ममें अनेक देवताकी जपासना का हालेर दाय प्रगल्भ दशाको पहुंचे। साथ ही माथ विधि-निषेध गंध. मला. वेश. श्रादि विशिष्ट प्रकारके सम्प्रदाय चिन्ह और भिन्न भिन्न सम्प्रदायके परस्पर व्यवहारक नियम भी अस्तित्वमें आये । उनकी पवित्रता अपवित्रता की मर्यादा ठहराई गई। हिन्दू धर्म संस्थाका सबसे वरिष्ठ और श्रेष्ठ एक और स्तर है। इसमें ब्रह्माकार. के धरवाद और तत्ववाद: यह तीन भंद हैं। - सब देवता एक ही सर्व व्यापी तत्व में समाये हुये हैं । मब देवता उसी एक तत्वके भाग हैं। पिण्ड और ब्रह्माण्ड एक ही सत्त्व तत्वसे उद्भूत होते हैं, वहीं स्थिर होते हैं और वहीं लीन होजाते हैं। ये तत्व-विश्व-स्प हैं । इस विचारका ब्रह्मयाद या मद्वाद कहते हैं। ऋग्वेदके अन्तमें दश मण्टलमें यह उदित हुआ और उपनिषद् (छान्दोग्योपनिषद् में परिणतको पहुंचा माननीय अत्मा जैसा हो परन्तु उसकी अपेक्षा श्रेष्ठ, सर्व-शक्ति सम्पन्न सर्वगुण-सम्पन्न, परमात्म व्यक्तिको अपेक्षा ब्रह्म अधिक सूक्ष्म है, ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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