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________________ ( २०.५ ) श्री वाले मधुके वारों वाले, सुरा के पनियों वाल दूध, पानी से, दही से भरे हुए, ये सारी धाराएँ I चतुरः कुम्भचितुर्धा ददामि चीरेण सँग उदकेन दना | एताम्वा धारा उपयन्तु सर्वाः स्वर्गे लोके मधुमत् पिन्वमाना उपत्वा चारा तिष्ठन्तु पुष्करिणीः समन्ताः ॥ ७ ॥ चार घड़े चार प्रकार से अलग अलग चार दिशाओं में रख देता हूँ दूध से दहीसे, पानोसे भरे हुए, ये सारी धाराएँ । • इम मोदनं निदधे ब्राह्मणेषु विष्टारिणं लोकजितं स्वर्गम्। स मे मा क्षेष्ट स्वा पियानो विश्वरुपाधेनुः कामदुधा मे अस्तु ॥1 ct लोकके जीतने वाले, स्व. इस विवारी श्रोतको मैं ब्राह्मणों में अमानत रखता हूँ के साथ बढ़ना हुआ यह श्रवन मत्र क्षीण हो। यह मेरे लिए सार रूप वाली धेनु काम दुधा कामनाओं का दूध देने वाली हो। ( तर्क तीर्थ पं० लक्ष्मण शास्त्री की सम्मति । ) "हिन्दू धर्म में देव कल्पना" देव कल्पना : "हिन्द धर्म इसकी अपेक्षा भी अधिक है। यह है वस्तु भाव-रूप तत्व यह दूसरे प्रकार की देवताओं की उपासना प्रसिद्ध है की चेतन रूप शक्ति अथवा तत्व को देवता मानना, यह कल्पना बेदीस ही उद्भूत हुई है । इन्द्र है चलदेवता वरुण है साम्राज्य देवता, सविता है आप प्रेरणारूप देवता. सरस्वति है पुष्टि देवता है या त्राग्देवता और श्री है सर्व वस्तुओं के उत्कृष्ट गुणका रहस्य देवता जिसमें एकत्रित हैं (शतपथ १९ ब्राह्मण) । प्रजापति यानि सर्व वस्तुमय जनन शक्ति ब 2
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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