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________________ ( २०६ ) ओर जाता है, साम पानेवाले मन्त्रकिं साथ आनन्द मनाता है । विष्टारिणमोदनं ये पचन्ति नैनान् यमः परि मुष्णाति रेतः रथी ह भूत्वा रथयान ईयते पक्षी ह भूत्वाति दिवः समेति ॥ ४ ॥ जो विधारी श्रोदनको पकाते हैं. यम उनके बीजको उनसे नहीं श्रीमता है, वह रथोंका स्वामी होकर रथ के मार्गों पर घूमता है और पक्षी होकर सारे आकाशको लाँघ जाता है। एष यज्ञानां विततो aftgt faeft year दिवमा विवेश । आडके कुमुद से तनोति बिसं श लूकं शफको मुलाली । एतास्वा धारा उपयन्तु सर्वाः स्वर्गे लोके मधुपत् विमाना उपत्वा तिष्ठन्तु पुष्करिणीः समन्ताः ।। ५ ।। J. यज्ञां के मध्य में बढ़िया ले जाने वाला यह फैला है चिारीको पकाकर वह स्वर्ग में प्रवेश करता है. अ. एडीक. कुमुद फैलाता है, श्रिस. शालूक, शफक. मुलाली. ऐ सारी धाराएँ, मधु वाली होकर पुष्टि हुई, स्वर्गलोक में तुझं मिलें और चारों और वर्तमान कमलों वाले सरोवर शुके मिलें । भाग्य - कौ० के अनुसार श्रदनमें छह और कुल्या बनाकर उनमें एडीक आदि डाले जाते हैं। ये सब पानीके पौधे हैं एडीक. अन्डे से कन्द वाला कुमुद रात्रीको खिलने वाला श्वेत कमल, बिस पकन्द शलूक, नीलोफरका कन्द, शफक, खुरको सी आकृति वाले कन्द बाला मुलानी- मुणालमिस । ये हद और कुल्या स्वर्ग और कुल्या प्रतिनिधि है। बृहदा धुतः सुदकाः चीरेण पूर्णा उदकेन दनः । एतास्त्वा ॥ ६ ॥ ❤
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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