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________________ ( १६६ ) १६- वाजेषु वाजिनं प्रायः, वाजेषु वाजिनं वाजय: - युद्धों में बल दिखाने वाली सुरक्षा कर । १७ – घनानां सातिः इन्द्र धनको प्रदान करता है। वीर धन कमाता चले उसका जनताकी उन्नति के लिये दान भी करे । १८ - रायः अवनिःघनकी सुरक्षा करे, १६- महान् सुपार:----दुःखांसे उत्तम पार ले जा । इन्द्र के घोड़े इन्द्रके रथ में दो घोड़े जोते जाते थे (मं० २५) परन्तु सहस्रों घोड़े उनके पास होने का वर्णन मंत्र २४ में है । इन्द्रके पास अश्व शाला में सहस्रों घोड़े होंगे। परन्तु एक समय में उसके रथको दो ही घोड़े जोते जाते होगे । रथको एक दो, तीन, चार पांच और सात तक घोड़े जोते जाने की संभा वना है। चार तक घोड़े आज भी जोतते हैं। : ि इन्द्र का मोल पञ्चममंत्र में शुल्क ले कर भी इन्द्रको मैं नहीं दूंगा ऐसा एक भक्तका वचन है। देखिये महे शुल्काय न परा देयाम् शताय, सहस्राय, भयुताय च न परा देयाम् । ( मं० ५ ) 'हे इन्द्र ! तुझे मैं बड़े सूप में भी नहीं दूंगा. नहीं बेचंगा | सौ. सहस्र और दश सहस्र मूल्य मिलने पर भी मैं नहीं दूर करूँगा, नहीं बेचंगा. इस मंत्र में शुल्काय न परा देय' ऐसा पद
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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