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________________ --शतक्रतुः-लकड़ी कर्म करने वाला. बड़े-बड़े कर्म करने वाला। -वाजी-बलवान्, अन्नधान । E-दस्म--शत्रुका नाश करने वाला, सुन्दर । इन पदों द्वारा कर्मकी कुशलता, गौत्रीका दान करनेका समाव. अपराजित रहनेका अल. ज्ञान और धारणमे युक्त अनेक बड़े कार्य करनेकी शक्ति, सामथ्यवान, शत्रुका नाश करना, श्रादि गुणोंका वर्णन हुश्रा है। ये गुण मानवोंके लिये अत्यन्त ही आवश्यक हैं 1 सिक्यों सास इन्द्रले भागाः धर्मन इस सूकमें किया गया है उन्हें देखिये १८-ऊतये जुर्मसि-हमारी सुरक्षाके लिये इन्द्रको बुलाना । अर्थान इन्द्र में जनताकी सुरक्षा करनेकी शक्ति है। . १५-स्खेतः महः गोदा:--धनवानका आनन्द गायकर दान करना है । धनवान इन्द्र है वह गौका दान करता है । धनवान पपने पास गौवें बन रखे और उनका प्रदान भी करे। १२-- अन्तमानां सुमनानां विद्याम-इन्द्र के पास जो उसम बुद्धियां हैं, उनको हम प्राप्त हुई । वोर बुद्धिमान हो और वह उत्सम मंत्रणा या परामर्श दूसराको दे। १३---सखिभ्यः वर श्रा (यच्छति)-मित्रोंको इष्ट और श्रेष्ठ वस्तुओंको प्रदान करता हैं । मित्रोंको कल्याणकारी यस्तु ही दी जाये। १४-इन्द्रस्य शमण स्याम- इन्द्र के सुख में हम रहे इन्द्र सुख देता है । पैसा सुस्त्र वीर सघ लोगोंको देखें। . १५-वृत्राणां धन:-.-धेरने वाले शत्रुका विनाश करने वाला, धीर अपने शत्रुका विनाश का ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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