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( कपटी के साथ कपट 'युक्तियोंसे, . और कुशल शत्रुासे कुशलतापूर्वक युद्ध लड़ना चाहिये) . . ऋग्वेदका सुबोध भाध्य. भाग, ६
इन्द्र देवताके गुण सुरूपकलुः-सुंदर रूप करने वाला, रूपको सौन्दर्य देने : बाला, जो करना है.वह अत्यन्त सुंदर बनाने वाला । यह इन्द्रकी कुशल कारीगरीका वर्णन है। मनुष्य भी अपने अन्दर इस तरह के कर्म करने में कुशलता लावे और बढ़ावे। .
'इन्द्रो मायाभिः पुरुरूपईयते । ( ऋ० ६६५८,५६ }
इन्द्र अपनी कुशलताओंसे अनेक रूप होकर विश्वरता है। इन्द्र अनेक रूप इतनी कुशलताके साथ कर लेता है कि पहिचाना नहीं जाता। ऐसा बहुरूपिया इन्द्र है। यह भी इन्द्रकी कुशलम का ही उदाहरण है। वैसी ही कुशलता इस पदमें वर्णन की है। इन्द्र जो बनाता है, वह सुन्दर बनाता है।
२.-सोमपा:-सोमरस का पान करने वाला । . ३-गो:-दा:-गौवें देने वाला 1
४--अ-स्सृतः-अपराजित, जिसको कोई पराजित नहीं कर सकता ऐसा अजेय वीर ! |
५---विपश्चित् :-शानी, विद्यावान ।
६-विना-मेधावाम' , प्रज्ञावान (निघ० ३१५।) जिसकी घुद्धि प्राहक शक्ति विशेष हैं। जिसकी विस्मृति नहीं होती।