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(४) सत्रादावन -एक साथ अनेक दान करने वाला। (५) वृषा-- बलवान , सुखोंकी वृद्धि करने वाला।
(६) अप्रतिधुत,--विरोध न करने वाला. निषेध न करने पाला।
(७) ईशान:--स्व:मी. प्रभु, अधिपति । इसमें हिरण्ययः' पदसे इन्द्रकी पोशाकका ज्ञान होता है। यह सुवर्ण । भूषा तथा सुनहरी श्रेल बूटेके वस्त्र पहनता था ।
वन धारण करता. बलवान होता हुआ भी अनुयायियोंका विरोध नहीं करता, और उनको यथेच्छ दान देता था। .
इन्द्र की लूट (स ) सततां इव शत्रूणां रत्नं अविदत् ।
ऋ० मं० ११५३ । १ अर्थ-असावधया सेाने याले शत्रुओंके. धनको यह इन्द्र प्राप्त करता है। इन्द्र अपने सैनिकों को साथ लोकर शत्रु पर हमला करता था, शत्रुको परास्त करनेके पश्चात् उसकी सम्पत्ति लूटकर लाता था, और वह धन अपने लोगोंमें यथायोग्य रीसिसे वांद देता था।
इन्द्र मायावी था त्वं मायाभिरप मायिनोऽधमः | ०.१ | १५१ ॥ ५॥ ( त्वं ( तान ).मायिनः मायाभिः अप अधमः) इन्द्रमे उन कपटी शोंको कपटसे ही नीचे गिरा दिया।