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________________ ( १९० ). है। मूल्य के लिये भी नहीं दूंगा. इसका अर्थ बेचना ही प्रतीत होता है। इस पर सायन भाष्य ऐसा है । महे महते शुल्काय मूल्याय न परा देवाम् । न विक्रीणामि । (सा० माध्य ८ । १ । ५ ) 'बड़ा मूल्य मिलने पर भी मैं तुझे नहीं बेचूंगा' ( I would notsell thee for a mighty price ग्रिफिथ विल्सन ) 'परा ' धातुका अर्थ बेचना है और देना या दूर करना भी है। शुल्क लेकर इन्द्रको दूर करने का भाव यहाँ पर स्पष्ट है । कितना भी धन का लालच मिले तो भी मैं इन्द्र की भक्ति छोड़ा से यहाँ है। कितना ही घन मिले, परन्तु मैं इन्द्र हो की भक्ति करूँगा। यह भक्तिकी हड़ता यहां बतलाई है । परन्तु कई लोग यहां इन्द्रको बेचने की कल्पना करते हैं । इन्द्र की मूर्तियाँ थी. ऐसा इनका मत है और वे मूर्तियाँ कुछ लेकर बेची जाती थी, ऐसा इस मंत्र से ये मानत है। मंत्रोंके शब्दों यह भाव टपक सकता है. इस में संदेह नहीं है। 'शुल्काय न परा देय मूल्य मिलने पर भी मैं नहीं बेलूंगा । 'शुल्क' का अर्थ वस्तु मूल्य है। यदि यह बात मानी जायेगी तो देवताओं की मूर्तियाँ थी। और उनकी पूजा और जलूम होते थे । ऐसा मानना पड़ेगा। इस मतको पुष्टिके लिये इन्द्रका रथ में बैठना वस्त्र पहनना, यज्ञ स्थान पर जाना, आदि मंत्रोका वर्णन उत्सव मूर्तिके जलूम जैसा मानना पड़ेगा | अमिके रथ में बंद कर अन्य देवता आते हैं, यह भी वर्णन जनूसका होगा। क्योंकि देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियाँ होगी. यी ही रथ में सच देवा ठा संभव है। (ऋग्वेदका सुबोध भाष्य, भाग २ )
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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