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। १५८ ) अनिष्ट की है । तथा दरिद्री दुःस्वो एवं नारको आदिके देखनेसे अपनेको जुगुप्सा ग्लानि अादि दुःस्त्र पदा होता है ऐसे अनिष्ट क्यों बनाए ? यदि यह कहा जाय कि यह जीव अपने रापसे लट चंटी दरिद्री नारकी आदि पर्यायोको भोगता है तो यह तो बादमें पाप करनेका फल हुआ. पहले रचना करने समय इनको क्यों बनाया ? मरे, यदि जीध पीछेसे पापरूप परिणत हुए तो कैसे ? अगर स्वयं ही परिणत हुए तो मालूम पड़ता है ब्रह्माने पहले तो पैदा किए बादमें वे उसके आधीन न रहे । इस कारण सेको दुःब ही प्रक्रिया के परिणाम न करनेसे वे पापाप परिणत हुए तो ब्रह्माने उन्हें पापरूप परिणत क्यों किया? जीत्र तो उसके ही पैदा किये हुए थे उनका बुरा किस लिये किया। इसलिये यह भी बात ठीक नहीं है.। अजीवों में भी सुवणं सुगंधादि सहित वस्तुयें तो रमणके लिये बनाई पर कुवर्ण दुगंधादि सहित दुःखदायक वस्तुएँ किस लिये बनाई ? इनके दर्शनादिकसे ब्रह्मको भी कुछ सुख पैदा नहीं होता होगा ? यदि पापी जीवोंका दुःख देनेके लिये बनाई तो अपने ही पैदा किये हुए जान से ऐसी दुष्टता क्योंकी जो उनके लिये दुःखदायक सामग्री पहले ही बनादी । तथा धूल पर्वतादिक कितनी ही वस्तुएँ ऐसी हैं जो अच्छी भी नहीं है और दुःखदायक भी नहीं है उनको किस लिथ बनाया ? अपने आप तो थे जैस तसे बन सकते हैं परन्तु बनाने वाला तो प्रयोजनको लेकर ही बनाया। इसलिए ब्रह्मा मृष्टिका कता है यह बचन मिथ्या है।
इसी तरह विधाको लोकका रक्षक कहा जाता है यह भी मिया है क्योंकि रक्षक तो हो हो काम करता है। एक तो दुग्व पदा होने का कारण न होने दे दूसर विनाशका कारण न होने दे। किन्तु लोक में दुःस्वके पदा होनेके कारण जहाँ तहाँ देखे जाने