SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ : हैं और उनसे जीवोंको दुःख हो देखने में आता है। भूख प्यास आदि लगते हैं शांत प्यादिसे दुःख होता है जब परस्पर दुःख पैदा करते हैं शस्त्रादि दुःखके कारण बनते हैं । तथा चिनट होनेके कारण मौजूद हैं। जीवके विनाश के कारण रोगादिक अभिष तथा शस्त्रादि देखे जाते हैं। और जीवोंके परस्पर में भी विनष्ट होनेके कारण मौजूद हैं। इस तरह जब दोनों प्रकारसे रक्षा नहीं की तो विष्णुने रक्षक बनकर क्या किया ? अगर यह कहा जाय कि विष्णु रक्षक हो है अन्यथा क्षुधा तृबादिकके लिये अन्न जलादिक कहाँसे श्राते, कीड़ोंको का और कुंजरको मन कौन देता ! संकटमें सहायता कौन करता मरणका कारण उपस्थित होने पर टिहरी की तरह कौन उरता इत्यादि बातो से मालूम पड़ता है कि विष्णु रक्षा करता ही है यह भी भ्रम है क्योंकि अगर ऐसा ही होता तो जहाँ जीवों को भूख प्यास पीड़ा देते हैं, अन्न जलादिक नहीं मिलते संकट पड़ने पर सहायता नहीं होती थोड़ा सा कारण पाकर मरण होजाता है वहाँ या तो विष्णुको शक्ति नहीं है या उसको ज्ञान नहीं हुआ । लोकमें बहुत से ऐसे प्राणी दुखी होकर मर जाते हैं। विष्णुने उनकी रक्षा क्या नहीं की ? यह कहना कि वह तो जीवोंके कर्तव्यों का फल है ऐसा ही है जैसे कोई शक्तिहीन लोभी झूटा बैच किसीका कुछ भला हो तो उसको अपना किया हुआ माने और बुरा हो भरना हो तो कहे कि उसका होनहार ही ऐसा था । जो कुछ भला हुआ यह तो विष्णुने किया और जो बुरा हुआ वह जोवोंके कर्तव्यों का फल हुआ ? भला ऐसी मूठी कल्पना किस लिए की जाती है ? या तो भला बुरा दोनों विष्णुका किया हुआ मानना चाहिये या दोनों उनके कर्तव्यका फल मानना चाहिए। यदि विष्णुका किया हुआ हैं तो बहुतसे जीव दुखी और शीघ्र मरते देखे जाते है, उसको
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy