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________________ । १५६ .. को अकर्ता मानना ठीक नहीं है। यह कहना कि उसका निर्धारण नहीं है मिथ्या है क्योंकि निर्धारण किए बिना ही यदि उसको माना जायगा तो आकाशके फूल गधेके सींग भी मानने पड़ेंगे । इसलिय ब्रह्मा, विष्णु, महेशका होना झूट है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश द्वारा सृष्टिके उत्पादन रक्षण और वंसका खण्डन प्रतिवादीकी यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा तो सृष्टि पैदा करता है. विष्णु रक्षा करता है और महेश संहार करता है। किन्तु उसका कहना ठीक नहीं है। क्योंकि इन कार्यों में से कोई कुछ करना चाहेगा और कोई कुछ करना चाहेगा तो परस्पर विरोध होगा। यह कहना कि यह तो परमेश्वरके हो रूप हैं इनमें विरोध क्यों होगा ? ठीक नहीं है क्यों कि जो आदमी स्वयं ही पैदाकर स्वयं ही मार उसके प्रेम काय करने में क्या लाभ है ? अगर सृष्टि उसे अनिष्ट लगती है तो पैदा ही क्यों करता है ? और. इष्ट लगती है तो नष्ट क्यों करता है यदि यह कहा जाय कि पहले इष्ट थी तब पैदा करने के पीछे अनिष्ट लगी तो विनाश किया, तो प्रश्न यह है कि इससे परमेश्वरका स्वभाव अन्यथा हुश्रा वा सृष्टिका स्वरूप अन्यथा हुया ! यदि पहला पक्ष मानोगे तो परमेश्वरका एक स्वभाव नहीं रहा । लब उस एक स्वभावके न रहनेका कारण क्या है यह भी बताना चाहिय क्योंकि बिना कारणके स्वभावका पलटना नहीं होता। यदि दूसरा पक्ष स्वीकार है तो सृष्टि तो परमधरके अधीन थी उसे ऐसा होने ही क्यों दिया कि अनिष्ट लगे। दूसरे हमारा पूछना यह है कि ब्रह्मा जो सृष्टि पैदा करता है
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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