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________________ ܕܕ 1 ( १५५ ) महत्ता दिखाने के लिए सृष्टि रचनाका खण्डन यदि कहा जाय कि ऐसा किए बिना उसकी महिमा प्रकट नहीं हो सकती थी तो इसका मतलब यह हुआ कि अपनी महिमा के लिये अपने अनुचरोंका पालन करता है और शत्रुओं का निग्रह करता है। इसीका नाम रागद्वेष है। और रागद्वेष ससारी जीव का लक्षण हैं। जब ये रागद्वेष परमेश्वरके ही पाया जाता है तब fore अन्य जीवोंको रागद्वेष छोड़कर समताभाव धारण करनेका उपदेश क्यों दिया जाता है ? और रागद्वेपके अनुसार कार्य करने में थोड़ा बहुत समय तो लगता हो है उतने समय तक परमेश्वरके श्राकुलता भी रहती होगी तथा जैसे जिस कामको छोटा आदमी कर सकता है उस कार्यको राजा स्वयं करे तो राजाकी इसमें महिम नहीं होती उल्टी निन्दा होती है। वैसे ही जिस कार्यको राजा व व्यन्तर देवादिक कर सकते हैं उस कार्यको यदि परमेश्वर स्वयं अवतार धारण कर करता है तो इसमें परमेश्वरकी कुछ महिमा नहीं है निन्दा ही है. इसके सिवा महिमा तो किसी और को दिखाई जाती है। लेकिन जब ब्रह्मत है तब महिमा किसको दिखाता है ? और महिमा दिखानेका फन तो स्तुति कराना है तो वह किससे स्तुति कराना चाहता है ? तो जब वह स्वयं स्तुति कराना चाहता है तो सब जीवोंको स्तुतिरूप प्रवृत्ति क्यों नहीं कराना । जिससे अन्य कार्य न करना पड़े। इसलिये महिमा के लिये भी कार्य करना ठीक नहीं कहा जासकता ! तर्क - परमेश्वर इन कार्यों को करता हुआ भी अकती है. इसका कुछ निर्धारण नहीं है। समाधान- कोई अपनी माताको वां कहें तो जैसे उसका कहना ठीक नहीं माना जाता वैसे ही कार्य करते हुए भी परमेश्वर
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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