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________________ ( ५५४ ) दुष्टों का निग्रह करने के लिये पवर अवतार धारण करता है, सी भी ठीक नहीं है, क्योंकि प्रयोजनके बिना चिउटी भी कार्य नहीं करती परमेश्वर भला क्यों करेगा? और फिर प्रयोजन भी ऐसा कि लोक प्रवृत्तिके लिये करता है। जैसे कोई पिता अपनी कुचेष्टाएँ पुत्रोको सिखाये और जब ये चेष्टाएँ करे सो उनको मारने लग जाय ऐसे पिताको भला अच्छा कैसे कहा जा सकता है ? वैसे ही ब्रह्म स्वयं काम क्रोध रूप चेष्टा से अपने पैदा किये लोगों को प्रवृत्ति कराता है और जब वे लोग वैसी प्रवृत्ति करते हैं तो उन्हें नरकादिकों में डाल देता है। शास्त्रों में नरकादिको इन्हीं भावों का फल लिखा है। ऐसे प्रभुको भला कैसे माना जा सकता है ? और यह जो कहा है कि उसका प्रयोजन भक्तोंकी रक्षा और दुष्टों का निग्रह हैं उसमें भी प्रश्न यह है कि भक्तोंके दुःख देने वाले जी दुष्ट लोग हैं वे परमेश्वरकी इच्छासे हुए हैं या बिना इच्छाके हुए हैं ? यदि इच्छासे हुए हैं तो जैसे कोई अपने सेवकोंको स्वयं ही पिटवाने और पीटने वालेको फिर दएड दे भला ऐसा स्वामी कैसे हो सकता है वैसे ही जो अपने भक्तोंको स्वयं अपनी इन्द्रासेदुष्टों द्वारा पीड़ित कराये और बादमें अवतार धारण कर उन दुष्टोंको मारे ऐसा ईश्वर भी अच्छा कैसे होसकता है ? अगर यह कहा जायगा कि बिना इच्छाके हो दुष्ट मनुष्य पैदा हुए तो या तो परमेश्वरको ऐसे भविष्यका ज्ञान न होगा कि दुष्ट मेरे भक्तों को दुःख देंगे या पहले ऐसी शक्ति न होगी जिससे वह इन्हें दुष्ट न होने देता। दूसरी बात यह हैं कि जब ऐसे कार्य के लिये परमात्माने अवतार धारण किया है। तो बिना अवतार धारण कि उसमें ऐसी शक्ति थी या नहीं ? अगर थी तो अवतार क्यों धारण करता है ? अगर नहीं थी पीछे शक्ति होने का क्या कारण हुआ ?
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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