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________________ अनुमनि सर्वमिदं बभूव यत् तिष्ठति चरति यदु च विश्व मेजति । अ० का० ७ । २१ । ६ ।। अर्थान अनुमति ही सब कुछ होगई. जो कुछ भी स्थावर और जंगम है वह सब अनुमति ही है । तथा च' का, ६1 में मेध्य बैलका वर्णन है, वहाँ लिग्वा है कि-- प्रजापतिश्च परमेष्ठी च भूगे इन्द्रः शिरो अग्निललार्ट यमः कुकाटम् ।। अर्थात् इस थैलके, प्रजापति और पर.ठी दोनों सींग है. इन्द्र देवतः इसका शिर है तथा अग्निदेव इसके मस्तक है तथा यमदंब उसके गले की घंटी है। आदि । यहाँ इस बलके ही प्राश्रय सब देवतःको बता दिया है। इत्यादि शतश: प्रमाण दिये जा सकते हैं जिनमें प्रत्येक पदाथकी इसी प्रकार स्तुति की है । तथा च हम अनेक युक्ति व प्रम गोंसे सिद्ध कर चुके हैं, कि चैदिक बांगमय में अनेक बनवाद है न कि एक देवतवाद । अतः उपरोक्त सव प्रमाण एकेश्वरवादकी पुष्ट्रि नहीं करते अपितु उसका विरोध ही करते हैं। क्योंकि यहाँ पृथक पृथक देवताओंका स्तुति उनके भक्तोंने अपने अपने देवताको उत्कृष्टता दिखाने के लिये की है। साधक भेद से साधक भेदसे दैवत भेद मानना भी युक्ति युक्त नहीं है। क्यों कि उस अवस्थामें वेदामें इन देवताओंकी निन्दा नहीं होनी चाहिये थी । परन्तु वेदोंमें श्रमि भक्तोंने इन्द्रकी और इन्द्र भक्तों ने अभिकी निन्दा की है. इसी प्रकार अन्य सव देवोंकी अवस्था है जैसा कि हम पूर्व में दिखला चुके हैं। तथा च वेदों में या अन्य वैदिक साहित्य में इसका उल्लेख तक भी नहीं है । हाँ श्रीशंकरा
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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