SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हे अग्नि! हम आपका परम गोपनीय नाम जान सके हैं एवं जिस उत्स से पाये हो उस उत्सको भा जान गए हैं। समीक्षा.-बाबू कोकिलेश्वर भट्टाचायने उपरोक्त प्रमाणोंको उद्धृत करके यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है कि ये सब देवाप्ता एक ही कारण सत्ताकी अभिव्यक्तियाँ हैं । परन्तु आपने यह विचार नहीं किया कि यह सब कथन स्तुतिवाद मात्र है। अथात् वैदिक समयमें कविता करनेकी यह ही प्रणाली थीं। यथा मन्यु (क्रोध ) का कथन करते हुये भी उपरोक्त प्रणालीका ही प्रयोग • किया गया है, यथापन्युरिन्द्रोमन्युरेवास देवो मन्युहोता वरुणो जात वेदाः। ऋ० १०।८।२ अर्थात् , मन्यु ( क्रोध ) ही इन्द्र है वही सर्व श्रेष्ठ देव है, वही होता है. वही वरुण और वहीं सर्वज्ञ अग्नि है। इसी प्रकार औषधी. बैल, बकरा. नमस्कार, आदिका वर्णन करते हुये सब देवीको उनके आधीन घताया गया है । जिनका कथन मृष्टि रचना प्रकरणमें आगे किया है। अतः यह सिद्ध है कि यह उस समय की प्रणाली थी। तथा दूसरी बात यह है कि-अग्नि आदिक उपासक कवि अपने अपने उपास्त्रको सर्व श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिये अन्य सब देवाको अपने उपाध्यके आनय अथवा जमकी भक्ति करने वाला कहा करत अं। यही कारण है कि-'इन्द्र' उपासक अग्निको निन्द्रा किया करते थे और अग्नि आदिके उपासक इन्द्रकी । अतः उपरोक्त संघ प्रमाण अापको पुष्ट न करके श्रापकी कल्पनाका विरोध ही करत हैं। विशेष क्या अथर्ववेदमें अनुमति ( अनुज्ञा. देनेको अनुमति कहते हैं ) का वर्णन करते हुये लिखा है कि
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy