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________________ ( ४३८ } (चन्द्र) तुम्हारे कार्यं द्वारा तुम्हे 'मित्र' भी कहा जाता है । है सविता ! दिवसमें तुम्हें पूषा कहा जाता है । हे वरुण हे श्रावित्य ! तुम प्राणीशसके पोषणका रूपसे इस जगत्‌को देखों । रुद्रका नाम कपर्दी एवं ईशान हैं पूपाका भी वही । कपर्दिनमीशानम्" + ॥ ६ ॥ ५५ ॥ ॥ श्रश्विनीकुमारीका पूषा नाम देखिये L 'श्रियेपूषन् । देवानासत्या' १ । १८४ | ३ || सभी देवताओके असंख्य बहुत नाम हैं, यह बात भी ऋग्वेद हमें बतला दी है- 'विश्वानि वो नमस्यानि चन्या नामानि देवः उत यशियानिवः ।। १० । ६३ । २ ॥ " देव ! आप सबके नमस्काराह और बन्दनीय क नाम हैं। आपके लिय नाम भी अनेक हैं 1 इसके अतिरिक्त सभी देवताओंका अन्य एक परम गुड़ा नाम भी है यह भी हमें पाते हैं। ऐसी बात क्यों कही गई ? कार्यके भीतर अनुस्यूत मूढ भाव से स्थित कारण सत्ता ही इस कथनका लक्ष्य है । देवो देवानां गुह्यानि नाम आविष्कृणोति ॥ ६६५२ देवताओंका जो परम गोपनीय एक एक नाम है सोमदेव ही उसका आविष्कार करते हैं। अन्यत्र भी हम पाते हैं कि अम एक परम गुह्य नाम है । विद्या नाम परमं गुहा यत् विद्यात सुसंयत आजगंथ । १० । ४५ १२ प्रथम व पंचम १११४ लिखा है । का नाम "पी"
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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