SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चार्य प्रादि विद्वानांने ऐसी ऐसी कल्पनायें केवल प्रति पक्षियोंको उत्तर देनेके लिये की है। परन्तु इन कल्पनाओं में न तो कोई वैदिक प्रमाण ही है, और न इनमें कुछ सार है। और न इत्यादि कल्पनायें सन्मुख सहरमी सकती हैं। ईश्वर की शक्तियाँ इस प्रकार जब शतशः प्रबल प्रमाणों द्वारा देवताओंका अनक्य सिद्ध हो जाता है तब भक्तजनोंने यह कल्पनाकी कि देवता तो पृथक पृथक ही हैं परन्तु ये सब ईश्वरकी शक्तियाँ हैं। जैसा कि श्रीमान् पं० राजारामजी आदि विद्वानोंने लिखा है । यहाँ यह प्रश्न उपस्थित होता है कि याहाँ शक्तिका क्या अर्थ है। क्या जिस प्रकार अग्निकी प्रकाशकत्व, दाहकत्र, उ-वंगमनत्व, आदि शक्तियाँ है ? उसी प्रकार यह सूर्य, चन्द्र, वायु, श्राकाश, पृथ्वी, जल. आदि ईश्वरकी शक्तियाँ हैं ? अथवा जिस प्रकार राजाकी शक्तियाँ संना, यान. कोरा श्रादि है, उस प्रकार ईश्वरकी यह शक्तियाँ है । प्रथम पक्षमें तो अमि आदि सम ईभरके गुण ही सिद्ध होते हैं. और गुण तथा गुण का मन केवल कथन मात्र ही है बास्तबमें न उनमें मंद है और न ही गुण पृथक पृथक हैं। अपितु वे सब गुण एक ही गुणकी पृथक पृथक अभिव्यक्तियों हैं । इसमे तो श्रीशंकराचार्य का अद्वैतवाद हो सिद्ध होता है। जिसको ये विद्वान स्वीकार नहीं करते । दूसरी अवस्थामें अनेक नित्य पदार्थोंका एक दुसरेके आधीन होना सिल नहीं होसकता। क्योंकि आधीन होना एक कार्य है जिसके लिये कारणकी आवश्यकता है, परन्तु यहाँ कारण का सर्वथा अभाव है । इसके अलावा एक बान यह भी है कि, जो आधीन होता है और जो श्राधीन करता है उन दोनोंकी अपनी र आवश्यकतायें अथवा कमजोरियाँ हैं, जिनको पूर्ण करने के लिय
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy